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शांति

shanti

मनुष्य बनना यद्यपि अभिशाप है

मैं मनुष्य बनूँगा।

शांति का प्रत्युत्तर यदि आग्नेयास्त्र है, तो

मैं शांति का श्वेत कबूतर बनूँगा।

फूलों की ख़ुशबू कभी-कभी

हालाँकि कइयों को यंत्रणा देती है

फिर भी मैं फूल बनकर खिलूँगा

किसी अनजान उपत्यका के

अनचीन्हे पेड़ पर।

इंद्रधनुष यद्यपि बाढ़ विपत्ति में

बारिश का हस्ताक्षर है,

तो भी मैं इंद्रधनुष के

सातों रंग लगाकर चकमक दिखूँगा

धुँधले आकाश के सीने में।

क्योंकि मुझे देखकर

अनागत

भोली मुस्कान से

मेरा स्वागत करेगा।

और परित्राण का चिरंतन पथ

यह हरित धरती

सुंदर दिखेगी

कृष्ण-स्वर्ण रंग का

ज्वलंत धूम कुंडली नहीं है

हरित वर्ण अर्धेन्द्र बनकर बरसाएगा

चाँदी-सी चाँदनी।

प्रतीक्षा कर रही है

नूतनता के चिरंतन यौवन के प्रवाह का।

बार-बार खो जाता है

जैसे कुंडली मारकर फुफकारता सर्प

फिर भी, उस नागराज के मस्तक पर

अंधकार भेदने के लिए मणि शोभा पाती है।

मुझे वही चमकीली

मणि चाहिए

शांति की मणि चाहिए

मैं शांति! तू शांति! वह शांति!

सभी तो शांति हैं

ओम् शांति।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारतीय कविताएँ 1989-90-91 (पृष्ठ 47)
  • संपादक : र. श. केलकर
  • रचनाकार : हुसेन रवि गांधी
  • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
  • संस्करण : 1993

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