पत्र
patr
मेरी कविता एक पत्र भर है
वैसे तो पत्रों का समय अब नहीं रहा
व्यक्तिगत संबंधों का भी समय, अब नहीं रहा
पत्र जो ज़रूरी (नहीं) थे
फिर भी इसे छोड़कर जा रहा हूँ
इसलिए कि प्रेम एक बहुत मीठी चीज़ है
इसलिए कि केवल विरोध करने के बजाए
सब कुछ हल करना ज़रूरी है
इसलिए कि कही गई बात ध्वनि भर रह गई
पेड़ों से, फूलों से, धरती से
आसमानों से टकरा कर रह गयी
इसलिए कि शरीर की शक्ति को तश्तरी में परोश कर रख दिया
इसलिए कि धरती सब कुछ सुन सुनकर
बहुत भारी हो गई है
और उसका सौंदर्य जगह-जगह से
उघड़कर बदरंग और जुगुप्सित हो चुका है
और इसलिए भी कि मेरी आँखों में—
रोशनाई की जगह बुद्ध और यम भर गए हैं
जो मेरे मस्तिष्क का चक्कर काटते हैं
वायुमंडल के ताप को दिन और रात में
बाँटते हैं
मेरे बाद यह पत्र
सबके दरवाज़ों पर जाएगा
जो जगह हवाओं से भरी है
वहाँ थोड़ी-सी जगह बनाकर
अपने शब्दों को रख आएगा,
जो बताएँगे कि कुछ था जो नहीं गुजरा
कोई नदी थी जिसे बहना ज़रूरी था
कोई हवा थी जिसे सुगंधित होना था
एक मुस्कुराहट
जो सबके चेहरों पर आनी थी
कोई बात जो बेहद ज़रूरी थी—
नहीं हुई
और दुनिया पूरब से पश्चिम को गुजर गई।
- रचनाकार : आकाश वर्मा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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