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परदा

parda

जिसमें हिरन कुलाँचे भर रहे हैं

जिसमें बंदर छलाँग मार रहे हैं एक पेड़ से

दूसरे पेड़ के लिए

जिसमें सूर्य बादलों की ओट से झाँक रहा है

जिसमें विभिन्न प्रजातियों के पेड़ों की एक शृंखला है

एक परदा है

दरवाज़े पर लटका हुआ

इस परदे की मोटाई और दृश्य प्रधान होना ही

इसे पसंद किए जाने का कारण था कभी

थान से फाड़ते वक़्त इस परदे के कपड़े की

एक आवाज़ हुई थी

किसी आज़ाद होते देश को दी गई

तोपों की सलामी-सी

बच्चों की तालियों के बीच

एक मज़बूत डोरी में दरवाज़े पर

टाँग दिया गया था यह परदा

एक स्थान को दो भागों में विभाजित करता हुआ

इस परदे की अपनी एक अलग सत्ता है

वर्षों से लटक रहा है जो दरवाज़े पर

इसमें कुलाँचे भरते हिरनों के पाँव

ज़मीन को छू नहीं पाए हैं अभी तक

बंदरों की वो लंबी छलाँग

हवा में ही है अभी भी

सूर्य बादलों की गिरफ्त़ से

बाहर नहीं निकल पाया है

जंगल के छोटे पेड़

छोटे हैं अब भी

बड़े पेड़ अभी भी बड़े हैं

हिरनों की आँखों की चमक खो गई है

पत्तियों में क्लोरोफिल

बनना बंद हो गया है

हमारे अविभाज्य अखंड दृश्य-जगत को

दो लोकों में बाँटता

आत्महत्या की परिणति-सा

लटका हुआ है परदा

एक नए जन्म की प्रतीक्षा में

स्रोत :
  • रचनाकार : हरीशचंद्र पांडे
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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