Font by Mehr Nastaliq Web

पलभर के लिए मणिका

palbhar ke liye manika

प्रसन्न कुमार मिश्र

प्रसन्न कुमार मिश्र

पलभर के लिए मणिका

प्रसन्न कुमार मिश्र

और अधिकप्रसन्न कुमार मिश्र

    चाहे पल भर ही सही

    यदि भेंट हो जाती मणिका संग

    तो अच्छा लगता सब कुछ

    फिर लौट आता मैं

    कविता में

    मणिका भी अपने पाले-पोसे

    तोते तो उड़ा देती

    पिंजरा खोलकर

    उस अनूठे पल में

    रहती नहीं दोनों में

    कोई वक्रोक्ति, साँसों में उड़ जाती

    सारी कृत्रिमता

    सारे प्रश्न लील हो जाते अपने-आप

    देखते ही देखते संदेह दूर हो जाता

    मणिका का मन ही नहीं होता पूछने

    —कहाँ थे इतने दिन

    मेरे खोए धन?

    क्योंकि वह ज़रूर जानती है

    कितना अकृतज्ञ है यह समाज!!

    कुछ खोने के पीछे

    जो कारण थे तब

    वे क़ायम हैं अब भी

    युग-युग की छाया लिए खड़ी

    मणिका को देख लेता जी भर

    मुझे लगता, मानो मैं देख रहा

    बार-बार पतझर के बाद

    कोंपलें उगाता

    प्रागैतिहासिक

    फलदार पेड़

    चूम-चूमकर

    नख से शिखा तक

    कहता—मणिका!

    यही है तेरी देह!

    तुम्हारी नाभि!

    तेरे होंठ!

    यही तो... यही है तो!!

    तुम्हीं हो वह पुष्प

    जिसे रंगकर नाचा था फागुन ख़ुशी में !!

    एक गुफ़ा के आदिम ऐश्वर्य में

    अजीब पल में

    पूछता— मणिका

    तुम कभी शतह्रदा थी?

    बोलो, इस बीच टूट गई है

    कुछ कलात्मकता?

    किसी निठुर ने लूटा है?

    पहली-सी भूख

    पहली-सी प्यास

    है तो! है तो !!

    कहती मणिका—

    शतह्रदा सदा शतह्रदा

    बनी रहती अपने प्रिय के लिए

    देखो ना चिबुक!

    देखो ना नख!

    तुम्हारे स्पर्श में हर तरफ़ अग्निकण!!

    सुनो, हृदय में शतह्रदा

    बजा रही अपनी वीणा

    फिर वह कहती— प्रिय,

    क्यों पूछते लूट का इतिहास?

    लुटे बिना रही कोई नारी?

    कौन-सा कला-स्थापत्य

    रहा अभंग?

    कौन पेड़ अटूट बचा?

    देखो, तुम्हारी प्रेमिका

    ऐसा एक कुंभ है

    सौ बार रीत कर भी है

    जो परिपूर्ण प्रिय के लिए

    दोनों के आवेग में

    भींग जाएगी दुपहर

    माप सकोगे नहीं पल का व्यास या परिधि

    मणिका बन जाएगी वह बेहिसाबी पल

    सूखी नदी लौट सकने की तरह

    उसकी वन्या,

    मणिका की छाती में भर जाएगा कल्लोल

    वह समझ जाएगी पल में

    कैसे सिर उठाते बेशुमार पल,

    वृत्त में समा जाता ब्रह्मांड

    वह कह देती— समझी, समझ गई

    प्रिय, कभी झूठा नहीं जीवन

    झूठ नहीं हो सकता प्रेम

    कभी भी व्यर्थ नहीं जाती

    वर्षों की प्रतीक्षा

    तपस्या में बिताया यौवन

    जान सकोगी मणिका

    कि इतने दंशन

    लांछन, प्रतारणा, आघात में

    इस पल भर के चुंबन के लिए

    कैसे बना रहा मधुमय

    मणिका का प्रिय कवि

    मणिका का प्रिय!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 177)
    • रचनाकार : प्रसन्न कुमार मिश्र
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए