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ज़रूरत से ज़्यादा

zarurat se zyada

शहबाज़ रिज़वी

शहबाज़ रिज़वी

ज़रूरत से ज़्यादा

शहबाज़ रिज़वी

और अधिकशहबाज़ रिज़वी

    इंसान जब ज़रूरत से ज़्यादा थक जाता है

    उसे नींद नहीं आती

    एक रोज़ मैंने उस्ताद के घर का सारा काम किया

    जैसे : घर की नाली साफ़ की

    बाग़ से आम तोड़े

    फ़र्श पर पोंछा लगाया

    और उनके बच्चों के साथ खेला

    मैं नहीं थका

    लेकिन इसके बदले में उस्ताद ने मुझे तालीम दी

    मैं बहुत थक गया

    उस रात मुझे माँ की गोद में भी नींद नहीं आई

    ज़रूरत से ज़्यादा भूखे रहने पर

    आपसे खाया नहीं जाता

    एक शाम

    मैं अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ गया तो

    उन्होंने अपने सपाट माथे पर

    चिंता की तमाम लकीरें भर कर

    अंदर आवाज़ दी—

    अरे कुछ खाने को लाओ…

    अंदर से हमदर्दी के प्लेट पर

    तंज़िया तौर पर सजे

    काजू-किशमिश-बादाम आए

    मेरी भूख मर गई

    ज़रूरत से ज़्यादा पढ़ लेने पर

    आप लिख नहीं पाते

    स्वप्निल भाई ने इसी वजह से

    अपनी क़लम से अपनी शह-रग काटी

    और अपनी नज़्मों को ज़िंदा कर लिया

    ज़रूरत से ज़्यादा प्यार मिलने पर

    आप प्यार नहीं कर पाते

    यही वजह थी जब उसने मेरे लिए

    राजस्थान की सारी रेत निचोड़ कर

    मोहब्बत की नदी बनाई तो

    मैं उसमें तैर नहीं सका

    डूब गया

    ज़रूरत से ज़्यादा

    ख़ुदकुशी के बारे में सोचने से

    आप ख़ुदकुशी नहीं कर पाते

    इसीलिए आज मैंने कुछ नहीं सोचा

    स्रोत :
    • रचनाकार : शहबाज़ रिज़वी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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