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पहली कविता

pahli kavita

आकांक्षा

अन्य

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आकांक्षा

पहली कविता

आकांक्षा

और अधिकआकांक्षा

    प्रेम,

    मेरे जीवन में,

    सदैव ही भू-चाल की तरह आया

    तब भी,

    जब वो प्रेम था भी नहीं।

    प्रेम की चाह, प्रेम की छुअन

    कहाँ-कहाँ नहीं ले गई मुझे

    अपनी आस मे।

    प्रेम ने मुझे, प्रेम होते हुए भी

    प्रेम ढूँढ़ने पर विवश कर दिया।

    या फिर, दोबारा आँख लगने पर

    कर दिया बाध्य

    मेज़ के नीचे छुपकर

    ख़ुद को और प्रेम को बचाने के लिए।

    जितनी ज़ोर से उसे पकड़ने की कोशिश की

    उतनी ही ढीली पड़ती गई पकड़ मेरे हाथ की

    और फ़िजूल हो गई वर्षों की तामीर

    जैसे कुछ ठोस था ही नहीं,

    सिर्फ़ ढेर।

    मलबे के ढेर में बैठे हुए,

    मेरी दृष्टि जब प्रेम पर पड़ी

    मेरी आत्मा सिहर उठी

    छाँछ को फूँक-फूँक के पीने के बजाए

    मेरे अंदर की दूध जली बिल्ली ने

    दूध देखा खीर

    और दम दबाकर भाग पड़ी

    प्रेम,

    इस बार मेरे जीवन में आकर

    मुझे भींच लेता है

    और तब तक गले लगाए रखता है

    जब तक मेरे सभी संताप,

    पिघल कर उसकी बाहों में गिर नहीं जाते

    जा तक दीख नहीं जाता

    मुझे उसकी आँखों में ब्रह्माँड।

    देते हुए संकेत,

    ऐसे भूचाल का,

    जो इति भी है और उत्पत्ति भी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उड़हुल का फूल (पृष्ठ 107)
    • रचनाकार : आकांक्षा
    • प्रकाशन : आईसेक्ट पब्लिकेशन
    • संस्करण : 2023

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