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पगलौनू आल्हा गावति हैं

paglaunu aalha gavati hain

भारतेंदु मिश्र

भारतेंदु मिश्र

पगलौनू आल्हा गावति हैं

भारतेंदु मिश्र

और अधिकभारतेंदु मिश्र

    पहिले लछमनिया पैदा भइ

    तौ हुइगा उनका मुख मलीन

    दउआ के लरिका भये तीन

    सकटू गिरिजा गयादीन।

    सब बड़ी जतन ते पाले गे

    सब अंगरेजी बिद्यालय गे

    हुसियार रही लछमनिया मुलु

    वा चौका चूल्हे मा खपि गै।

    लरिका बिद्यालय मा पढ़िकै

    अंगरेजी बिद्या सीख लिहिन

    दउआ की कौनौ सुनेसि नहीं

    सब अपने आप बिहाव किहिन।

    सब खेती पाती बेंचि खोंचि

    वुइ राई रत्ती बाँटि लिहिन

    आपसै मा लड़िकै दीमक जस

    अपनी देहरी का चाटि लिहिन।

    जब ते भौजी परलोक गयीं

    दउआ पीपर जस हरहराँय

    जिउ कहूँ लागै ट्वाला मा

    मन मा झरसैं तन मा बुताँय।

    सब लरिका आपन हिस्सा लै

    दिल्ली-कलकत्ता भाजि गये

    लछमनिया बिटिया याक रही

    बस वहै सहारा बनि गई है।

    रहिगे अकेल वुइ खड़हर मा

    घरु पुरखिन बिना रहै सूना

    खटिया पकरे पगलान बैठ

    अब हुइगा उनका दुःख दूना।

    सस्ते मा लछमी का बिहाव

    दउआ निपटायेनि रहै मुला

    पौरुखु घटिगा थकि रही सांस

    अब तौ रहिगा बसि चली चला।

    बिटिया के मन मा टीस नहीं

    वा सेवा भाव जनावति है

    खांसी बोखार का पता चलै

    तौ दौरि धूप घर आवति है।

    लरिका कौनौ सुधि लेत नहीं

    पगलौनू आल्हा गावति हैं

    लछमी की सेवा ते दउआ की

    आंखि रोजु, भरि आवति है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भाखा की गठरी (पृष्ठ 26)
    • रचनाकार : भारतेन्दु मिश्र
    • प्रकाशन : परिकल्पना, दिल्ली
    • संस्करण : 2025

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