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नीमसार का मेला

nimsar ka mela

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

नीमसार का मेला

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

और अधिकजगजीवन मिश्र ‘जीवन’

    गाँव-गाँव से नैमिष निकला ट्रालिन का है रेला

    चलउ अम्बावस मेला, चलउ अम्बावस मेला

    बोली हंसा मइया हमरी पूरी भई मनौती

    माँगे लड़िका दीन्हे हउ हइ हमरी बनी बनौतीं

    अब तुम्हरे दर्शन करिबा हम जो माँगा सो पावा

    गाँव घरन के लोग चलइ बदि ट्रालिउ हइ मंगवावा

    सजी टराली अम्बावस की आयी मिलइ की बेला

    चलउ अम्बावस मेला, चलउ अम्बावस मेला

    जगराता जनखा बैठी हैं सोनवा मनभासो

    दौरि टराली पर चढ़ि बैठीं सुक्खा औरु बतासो

    रामचरन गजराजउ बैठे पूरी डेलवा रोंके

    कुछु बोले दालउ अब टट्टरु बिन छींके बिन टोंके

    हिल्डोलना अस हालति चलि’भै ट्राली बनिके ठेला

    चलउ अम्बावस मेला, चलउ अम्बावस मेला

    धक्का लाग बाल्टी टूटी बहिगा जनख’क बाला

    मँगरे के डेण्डा मा फँसिगा सोनवा केरा माला

    आधी पूरी डेलवम रहिगइँ आधी गिरि गइँ खाले

    कोई केरि बिटेवा रोवइ कोई को, घरवाले

    खचर-पचर सबु भवा माबिला मचा हइ रेलिम पेला

    चलउ अम्बावस मेला, चलउ अम्बावस मेला

    उतरि-उतरि परसादु खरीदिनि बीरा औरु बतासा

    कुछु पहिलेइ ते लइ बाँधी हनि लाई और सम्वासा

    कुछु भीतर कुछु बाहेर रहिगे भीड़ भई हइ भारी

    केतना दानु चढ़इहौ पूछइ मन्दिर क्यार पुजारी

    आधेन के रुपया जेवर गै आवा भीड़ का हेला

    चलउ अम्बावस मेला, चलउ अम्बावस मेला

    दउँ-दउँ मचइ खूब म्याला मा छीना झपटी लागी

    कोइ कहै हवनु करवाओ धरे बैठ हइँ आगी

    कोइ लगावइ चन्दनु–बन्दनु कुछु पहिंदावइँ माला

    कुछ चुनरी दइ पइसा मागइँ चुनरिउ बनी दुसाला

    कुछु तौ हइ पण्डा लइगे कुछु लइगे उनके चेला

    चलउ अम्बावस मेला, चलउ अम्बावस मेला

    तले सुमेसुरी केरि बिटेवा जानइ कहाँ हेरानी

    फिरि मानउ परसादु लाल्तक बोली बइजुकि नानी

    भइ खरिद्दारी फिरि जमिके बाला बुन्दा चूड़ी

    रिनियाँ की अम्मा गरियावइ यहु का लाई जमूड़ी

    मँगरे लेहे टिकुलिया ठाढ़े सोनवा लीन्हिसि केला

    चलउ अम्बावस मेला, चलउ अम्बावस मेला

    अब सुधि आयी घरइ चलइ की तौ ट्राली वर बढ़िगें

    पकरि हाँथ इक दुसरे केरा लइ सामानउ चढ़िगे

    कोई हँसइ बरफु कोइ चूसइ कुछु डारे गल बहियाँ

    किसमति उनकी फूटि गयी जइ रहइँ बचावइ महियाँ

    ट्राली परिहाँ नथुआ रोवइ भूखा बैठ अकेला

    चलउ अम्बावस मेला, चलउ अम्बावस मेला

    धीरे-धीरे टट्टरु चलिभा चर्चउ धीरे-धीरे

    फिरि तौ सुरु जवाबी हुइ गयीं जैसे बजँइ मंजीरे

    कोई लड़ै जलेबिन परिहाँ कोई कहै जइबै

    कोई कहइ कसम खाइति हइ अब कबहूँना अइबै

    सम्भू दुलहिनि का गरियावइँ तीर रहा धेला

    चलउ अम्बावस मेला, चलउ अम्बावस मेला

    ड्राइवरु बातन मा परिगा ट्राली पुलिय’ति टकरानी

    कोई केरा मुहुँ फूटा कोइकि सब द्याँह चोटानी

    कुछु गरियावइँ ड्राइवर का कुछु हंसा का गरियावइँ

    कुछु अपने लड़िका बच्चन के हाँथ पाँइ सोहरावइँ

    कुछु की देहीं बनी टमाटर खपड़ी बनी करेला

    चलउ अम्बावस मेला, चलउ अम्बावस मेला

    जैसे-तैसे घर पहुँचे तब नवा जलमु अस पाइनि

    कुछु तौ लाइ दवाई खाइनि कुछु हरदी चुपराइनि

    कुछु तौ रोवइँ घरमा बैठे जोरि-जोरि के खरचा

    बना बवन्डर गाँव भरे मा हइ मेलइ की चरचा

    दर्सन हइँ मँहगे परिगे सबु काम भवा अलबेला

    चलउ अम्बावस मेला, चलउ अम्बावस मेला

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिरका (अवधी गीत संग्रह) (पृष्ठ 24)
    • रचनाकार : जगजीवन मिश्र ‘जीवन’
    • प्रकाशन : भगवत मेमोरियल इंटर कॉलेज समिति, मिश्रिख, सीतापुर
    • संस्करण : 2015

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