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निकट अतीत में प्रकट हुए प्रेम की स्मृति

nikat atit mein prakat hue prem ki smriti

अनुवाद : सुरेश सलिल

रफ़ाइल अलबर्ती

अन्य

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रफ़ाइल अलबर्ती

निकट अतीत में प्रकट हुए प्रेम की स्मृति

रफ़ाइल अलबर्ती

और अधिकरफ़ाइल अलबर्ती

    तुम जब प्रकट हुईं

    मैं एक गहन गुफ़ा की प्रेतछायाओं से आक्रांत था

    उसमें हवा थी; निकास,

    उस अँधेरे में, मैं एक अदृश्य परिंदे के

    धड़कते दिल-जैसे स्पंदित एक घर्रे को सुनते हुए

    हाथ-पैर पटकता छटपटा रहा था।

    तुम्हारे केश मेरे ऊपर छितराए

    और यह अनुभव करते हुए कि ये लटें

    झरने के उच्च ज्वार पर फैली भोर हैं

    उन्हें सीढ़ी बनाकर मैं सूर्य तक पहुँच गया।

    यह वैसा ही था; जैसे मैं किसी बहुत ख़ूबसूरत

    दक्षिणी बंदरगाह पर पहुँच गया होऊँ।

    तुममें अत्यंत उल्लसित भूदृश्य प्रतिबिंबित हो रहे थे

    पारदर्शी-प्रखर पर्वत

    और गुलाबी हिम से आच्छादित उनके शिखर,

    घुँघराले अरण्य की परछाइयों में छिपे फ़ौवारे।

    मैंने तुम्हारे कंधे की टेक ली विश्राम के लिए

    नदियों और ढलानों में उतरने के लिए

    अँगड़ाई लेती शाखों में गुँथ जाने के लिए

    और अपनी मधुरतम मृत्यु के सपने बुनने के लिए।

    विजयोल्लसित तोरणद्वार मेरे लिए खुल गए

    और मेरा मुकुलित यौवन औचक जगमगा उठा;

    तुम्हारे प्रेम के स्पृश्य एकांत में अब तक लेटा हुआ,

    जबकि मेरा दिल, तुम्हारी अपनी हरी लय में

    ताल देता हुआ, खुली हवा में जा प्रकट हुआ।

    अब मैं सो सकता था, जाग सकता था

    इस अहसास के साथ कि बिना हवा और निकास वाली

    किसी गुफ़ा में हाथ-पैर मारते हुए

    अब मैं कष्ट में नहीं हूँ।

    ऐसा इसलिए हुआ, कि अंत में तुम प्रकट हुई।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 197)
    • रचनाकार : रफ़ाइल अलबर्ती
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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