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शब ब ख़ैर

shab ba khair

लुई सिंपसन

लुई सिंपसन

शब ब ख़ैर

लुई सिंपसन

और अधिकलुई सिंपसन

     

    चुपचाप एक आदमी सिरहाने खड़ा था
    बेटी को साँस लेते हुए देखता हुआ
    वह हाथ का तकिया लगाए लेटी हुई थी
    घुँघराले बाल उस के सुनहले सियाह थे

    वह सोचता था इस में अक़्ल और नूर है
    तक़दीर की भी अच्छी हो तो भी ये वस्तुएँ
    उस को बचा न पाएगी हर एक बला से

    बच्चों की ज़िंदगानी बाप की निगाह में
    ख़ौफोख़तर से आग से पानी से हवा से
    और जाने कितने और भी अंदेशों से भरी है
    कुछ बाप सर्वनाश को आता हुआ समझ
    घबरा के अपने बच्चे की ख़ातिर समाज को
    संकट से मुक्त कर दिया करते हैं इस तरह
    जैसे कि उनका अपना सुरक्षित मकान हो

    वह दर्द जो कि लाओकून1 झेल चुका है
    कोई कहाँ से उस की तरह झेल सकेगा

    उसने तड़प के देखा था, संतान भी उसी
    जकड़न में क़ैद थी कि जिस में ख़ुद वह क़ैद था

    अपने पिता के कर्म के कौशल से लैस हो
    सूरज की ओर उड़ के इकारस भी चला था
    जिस को वहाँ पहुँच के मिली आगे की भँवर

    बच्चों को ख़तरनाक खेल खेलते हुए
    जो देख के घबराता है वह शोर मचा कर

    बच्चों को भगा देता है हौवे से डरा कर
    नज़रों की ओट और पहुँच से परे कहीं
    वे लड़खड़ा के चलते हुए, गुज़र जाते हैं
    एक ख़ाली जाम थामे हुए, ख़ाली रेत पर

    वह बाप खड़ा है एकांत में कहीं
    ऐसे तो दिल कठोर कभी हो न सकेगा
    बर्दाश्त करूँ बच्चे की कमज़ोरियों को मैं
    जैसे कि किया करता हूँ अपनी बज़ातख़ुद
    बेहतर है धड़कते हुए ख़ून और गोश्त से
    हर रात सोते वक़्त विदा यों लिया करूँ
    जैसे कि हुआ करती हो हर एक शब ब ख़ैर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 246)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : लुई सिंपसन
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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