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लगाबू खूब नारा

मुख्तार आलम

अन्य

अन्य

मुख्तार आलम

लगाबू खूब नारा

मुख्तार आलम

और अधिकमुख्तार आलम

    जखन कि

    समाजक प्रबुद्ध लोक

    अपन मुँहमे

    जाबी लगा लैत अछि

    भए जाइत अछि

    मतरसुन्न

    तँ ईश्वरो

    बदलि लैत अछि

    अपन मोन मिजाज

    रीति नीति

    नहि खुश होयत अछि

    मन्दिरक घंटी

    मस्जिदक अजानसँ

    नहि खुश होइत अछि

    सुख, शांति, मित्रता

    बंधुत्वसँ

    ओकरा चाही

    पियास मिझाबैक लेल

    मनुष्यक लाल टुह-टुह

    गरमा-गरम खून

    सुनबाक लेल चाही

    जुलुसक उन्माद भरल नारा

    खन-खन बाजैत

    तरुआरिक ध्वनि

    देखैक लेल चाही

    छटपटाइत हाथ-पयर

    अलग रुण्डसँ मुण्ड

    खेलेक लेल चाही

    लहासपर कबड्डी

    एहन खुनीमा समयमे

    अपना सभ

    चुपचाप बैसल

    किये छी भाइ

    अपनो सभ उठा लिअ

    कोनो झंडा

    हिन्दू-मुसलमान केर

    अगड़ा-पिछड़ाक

    लगाबू खूब नारा

    भाँजू तरुआरि

    ताकि देबताक कुर्सी

    डोलय नहि

    रहय एक छत्र राज

    जुग-जुग धरि।

    स्रोत :
    • पुस्तक : परिचय बनैत शब्द (पृष्ठ 63)
    • रचनाकार : मुख्तार आलम
    • प्रकाशन : मुख्तार आलम
    • संस्करण : 2021

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