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मुझे पहाड़ ने थामा है

mujhe pahaD ne thama hai

शोभा अक्षर

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शोभा अक्षर

मुझे पहाड़ ने थामा है

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    मेरे भीतर की सारी चीख़ें

    मेरे कंधों पर चढ़ गई हैं

    मैं चलती हूँ

    हर क़दम पर एक चीख़ गिरती है

    पर गिरकर मरती नहीं

    पत्थर बनकर

    मेरे रास्ते में अटक जाती है

    मेरे सपने

    चट्टानों में अटक गए हैं

    जैसे कोई पक्षी

    अपने टूटे पंखों के साथ

    ऊँची चट्टान पर फँस जाए

    मैं अपने सपनों को

    छुड़ाने की कोशिश करती हूँ

    हर कोशिश में एक सपना टूट जाता है

    और उसके टुकड़े

    मेरे भीतर की खाई में गिरकर

    कभी मिटने वाले

    निशान बना देते हैं

    मेरी ख़ामोशी

    आँखों में क़ैद हो गई है

    जैसे कोई गहरा कुआँ

    जिसमें सिर्फ़ अँधेरा है

    और उस अँधेरे में

    मेरे सारे शब्द डूब गए हैं

    मैं बोलना चाहती हूँ

    पर मेरी ज़ुबान

    पत्थर की तरह भारी हो गई है

    हर शब्द निकलने से पहले

    मेरे गले में अटक जाता है

    मेरे डर मेरे भीतर भटक रहे हैं

    जैसे कोई जंगली जानवर

    अपने शिकार की तलाश में भटकता है

    रात को वे मेरे सीने में दहाड़ते हैं

    और मैं जागती रहती हूँ

    उनकी आँखों में

    अपना चेहरा देखती हूँ

    सुबह होते ही वे छिप जाते हैं

    पर उनकी गंध

    मेरे ख़ून में बसी रहती है

    मेरे गीत

    जो मैंने कभी नहीं गाए

    उनकी धुन स्मृति से मिट गई है

    जैसे कोई नदी सूखकर

    अपने किनारे भूल गई हो

    मेरी बाकी उम्र

    अब पहाड़ का हिस्सा बन गई है

    मैं उसमें समा गई हूँ

    मैं उसकी थामी हुई हूँ

    स्रोत :
    • रचनाकार : शोभा अक्षर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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