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मृत्यु है संदेश प्रेम का

mrityu hai sandesh prem ka

कलानाथ मिश्र

कलानाथ मिश्र

मृत्यु है संदेश प्रेम का

कलानाथ मिश्र

और अधिककलानाथ मिश्र

    मृत्यु से क्या डरना रे

    प्रक्रिया परिधान परिवर्तन का

    मर रहा जो त्याज्य वह है

    मोह कैसा करना रे...

    वही रुदन स्वाभाविक तेरा

    जन्म लेते जब मृत्यु-वन में

    बिछुर असीम अनंत से जब

    बंध जाते किसी सीमित तन में,

    स्वतंत्र स्तित्व के अंबर से जब,

    पराधीन जीवन में बंधना रे...

    मृत्यु से क्या डरना रे...

    जीर्ण-शीर्ण खंडहर में रहकर

    कौन भला सुख पाता है?

    ढ़ह जाने दो पार्थिव गृह को,

    हो शस्वत घर संरचना रे,

    मृत्यु से क्या डरना रे...।

    मृत्यु तो है संदेश प्रेम का,

    आता जो तेरे निज आश्रम से।

    विस्मृत कर जिस शस्वत संबंध को

    आशक्त हुए नव जीवन से।

    अब छोड़ कुटुम्ब का आतिथ्य सखे

    अपने घर को जाना रे...

    मृत्यु से क्या डरना रे...।

    ज्यों बिछुड़ कर सिंधु से जल

    अम्बर में जा उमड़-घुमड़ता

    पुनि नद-प्रणाल से होकर जैसे

    सागर में ही जाकर मिलता।

    सागर के ही कण तुम बिछुरड़े,

    अनगित योनि से चलकर आए।

    भय कैसा इस महा प्रयाण में

    जब सागर में ही मिलना रे...

    मृत्यु से क्या डरना रे...

    स्रोत :
    • रचनाकार : कलानाथ मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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