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मृत्यु का माहात्म्य

mirtyu ka mahatmy

एक व्यक्ति जिसके चले जाने से कोई ख़ाली जगह नहीं बनेगी

दरवाज़ा खोलकर चला जाएगा अपना निर्वासन और अपनी उपेक्षा साथ लेकर

और जैसा कि होता आया है लगातार उपस्थित लेकिन निरंतर उपेक्षित व्यक्तियों के साथ

उसके भी चले जाने पर लोग उमड़ पड़ेंगे अपनी शर्म और नज़दीकी दिखाने की युयुत्सा में

और ऐसा भी होता ही आया होगा कि

उस व्यक्ति के साथ लगातार बने रहे लोग

उसके जाने के बाद आए लोगों में

शामिल होने के लिए नहीं आएँगे

इस तरह

इन दो तरह के लोगों के द्वंद्व से या फिर

उपस्थित लोगों के स्वयं ही के विरोधाभासों से

स्मृति और संबंधों और सामाजिकता की एक परीक्षा संपन्न होगी

एक व्यक्ति के चले जाने की घटना के बाद के अनुष्ठान में

कहने की आवश्यकता नहीं पर मुँह खोलकर कह दिया जाए—

इस पूरे अनुष्ठान में

इस पूरी शर्म में

स्त्रियाँ कहीं नहीं हैं

स्रोत :
  • रचनाकार : अमन त्रिपाठी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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