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मेरे अंदर

mere andar

अन्य

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मेरे अंदर एक मरा हुआ काफ़्का है

जो शाम को लिखने की टेबल पर बैठ अपनी गर्दन खुजाता है,

सोचता है खाने में क्या है आज रात

और यह भी बहन के स्कूल की फ़ीस कैसे भरी जाएगी अगले महीने।

सुबह बेतरतीब उठता है ये मेरे अंदर से

बिस्तर छोड़ना ही नहीं चाहता कमबख़्त!

मेरे अंदर एक पेसोआ भी है

अपने द्वीप-महाद्वीप में विचरता है,

चश्मा टिकाता है नाक पर,

छड़ी के सहारे किसी तरह चढ़ जाता है पाँचवी मंजिल पर,

चाय पीते वक़्त सोचता है प्रेयसी के बारे में,

लिखता है बेचैनी की कविताएँ।

मेरे अंदर फिर तीसरा भी है—मार्केज़—

जादूगर होना चाहिए था जिसे।

मार्केज़ ने पाले हैं मेरे दिल के भीतर कुछ सौ सफ़ेद हाथी

जिन्हें वह श्रीलंका से पकड़ लाया था।

वह सपनों में जीता है हरदम

नीले पहाड़ों के स्वप्न पहली बार मार्केज़ ही ने उगाए थे

हमारे अवचेतन में

लाल मोर पर उसी ने की पहली फ़ोटोग्राफ़ी।

उसका एक अपना तोता भी है

जिसे बूढ़े कर्नल को दे दिया मैंने और उसने।

मेरे अंदर ये तीन हैं और,

और भी हैं शायद।

ये मुझे धीरे-धीरे खा रहे हैं,

चाट रहे हैं—दीमक की तरह।

स्रोत :
  • रचनाकार : आदित्य शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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