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मशीनी हाथ

mashini haath

पूनम शुक्ला

पूनम शुक्ला

मशीनी हाथ

पूनम शुक्ला

और अधिकपूनम शुक्ला

    सुबह से शाम तक

    कैसे करते हैं लोग

    एक-सा ही काम

    एक किसान जो हल जोतता है

    जोतता ही रहता है दिनभर

    कटिया करती महिलाएँ

    काटती रहती हैं

    दिन भर गेंहूँ बाजरे

    ईंटे ढ़ोता वह मजदूर

    पूरे दिन कैसे ढ़ोता है ईंटे

    फैक्ट्री के भीतर

    दिन भर एक-सी ही

    ऐसेम्बलिंग करते हैं कई हाथ

    हाथों में कटर लिए

    दिन भर बस धागे ही

    कैसे काटते हैं कई हाथ

    स्कूल में मास्टर साहब

    हर साल पढ़ाते हैं वही

    पहले वाले सारे पाठ

    और फिर एक से ही सवाल जवाब

    दिन भर कैसे जाँचते हैं उनके हाथ

    ये हाथ तो सुन्न पड़ जाते होंगे

    एक-सा ही करते-करते काम

    मशीन से बस चलते ही रहते होंगे

    बिना किसी आदेश, बिना किसी ज्ञान

    पर इन्हें ख़ुराक मिल ही जाती है

    पीड़ा और भूख के आग की

    इन्हें मिलते हैं सपनों के रंग

    घरवाली के हाथों की हरी चूड़ियों की खनक से

    सुनते रहते हैं ये हाथ

    बच्चों के हाथ में खेलते खिलौनों की बात

    बहन के हाथों की मेंहदी

    भेज देती है इन्हें जीवन की गंध

    नहीं ये मशीनी हाथ नहीं

    जुड़े हैं इन हाथों से

    कई धड़कते जीवंत हाथ

    स्रोत :
    • रचनाकार : पूनम शुक्ला
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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