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मंटो का एक पात्र

manto ka ek paatr

प्रेमा झा

प्रेमा झा

मंटो का एक पात्र

प्रेमा झा

और अधिकप्रेमा झा

    मैं रोमाँस लिखकर थक चुका था

    मैंने सही रस्ते का इंतख़ाब तो नहीं किया अब भी

    मगर गर्म उबलती दोपहर में प्यास के स्वाद को जान लिया है

    मैंने रेशमी कपड़े ख़रीदे उसके लिए

    जिसका होना मेरी मुक़द्दर को राज़ी था

    मुझे उसे मेरी माशूका कहने से कोई गुरेज़ था

    मैं उसे नए कपड़ों में वैसा ही देखना चाहता था

    जैसा कि मंटो की कहानियों की होती थी कोई भोली नायिका

    या कि

    राशेल, बलाश, गैबी, कैथरीन या लैनी जैसी किसी विदेशी नावलों की

    सांयोगिक पात्रा

    वो मेरा घर थी सो सूरज, तारे, चाँद सब उसके गिर्द खुलते थे

    मगर अफ़सोस उसका मेरा होना बाकी रहा

    जैसे अटकी हुई होगी साँसे विनसैंट की आख़िरी क्षणों में स्थगित

    मैं क्रॉप की हुई तस्वीरों-सा रहा

    जिसे महफ़िल में पिछले वाले दरवाज़े से इजाज़त मिली थी

    मैंने मुहब्बत को इससे पहले भी पढ़ने की कोशिश की थी

    मगर सेक्स और रोमाँस, दुनिया और रीति-रिवाज़

    में बार-बार उलझता रहा!

    मेरे हाथ अख़बार का काग़ज़ था

    जिसमें मुझे समय के दो कान काट कर रखने थे

    अजायबखाना में रखे कीमती पत्थरों का मोह

    मुझसे अब तक छूट सका मगर

    मैं कश्मीर से कन्याकुमारी तक गया

    हिरन की छाल से ख़रगोश के फ़र तक

    भेड़ वाली गर्मी मेरे लिए अब तक संदिग्ध और कम ख़ूबसूरत थी

    कुदरत जानती है या कि हम बस!

    सर्दी को आग चाहिए

    चाँद के लिए सिक्का-भर ज़मीन

    धूप और मेघ के लिए चाहिए होता है कटोरे भर समय

    और दिल को चाहिए होता है तीन नसों से ख़ून

    मसलन; अलफ़ाज़, नींद, और किसी का टूटकर चाहना

    फिर भी मुझे मुहब्बत लिखना नहीं था, उसे जीना था!

    मुझे उसकी तलाश थी जो जड़ाऊदार साड़ी, सुगंधित इत्र

    और बहुत महँगी लाली के बगैर भी सम्मोहित कर सके

    मुझे ख़ूबसूरती की आत्मा की खोज थी

    और वो बेशक आँखें खोल कर किया हुआ प्रेम था!

    #विनसैंट: विदेशी नॉवेल ‘मैं राशेल’ का एक पात्र! अमृता प्रीतम के रचना-संग्रह “दो खिड़कियाँ” संग्रह से साभार

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रेमा झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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