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मनोरथ

manorath

प्रणव नार्मदेय

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और अधिकप्रणव नार्मदेय

    नहि!

    नहि चाही हमरा

    आसमानी ऊँचाइ ओतेक

    कोनो ताड़क गाछ सन

    कहाँ होमय चाहैत छी हम

    बुझलहुँ जे होइत हेतैक सुभीत

    ललकारब ओतयसँ अकासकेँ

    मुदा ताहि लेल

    बेधि देब' पड़ैत छै छाती कोमल माटिक

    गोड़ि देब' पड़ैत छै गहींर अपनहि जड़िकेँ

    चूसि लेब' पड़ैत छै एकहक बुन्न

    अपने सिरजनहारक प्राण-रस

    मुदा की हितारथ

    अकास जितबा लेल एतेक उताहुल भैयोक'

    देखल जे

    आश्रय रहैत छै ओतय

    कोनो कौआ, चिल्होड़ि वा गिद्धे टाक

    सुनल जे

    देखा पड़ैत छै ओतयसँ

    सगरो दुनियाँ बस चुट्टी-पिपड़ी

    आनक त' गप्पे छोडू

    देखियौ जे

    छाहरियोटा कहाँ होइत छै नसीब

    जड़ि धयने माटियो तककेँ

    से बरू

    रहय दिय हमरा नान्हिएटा

    साग-पात, लत्ती-फत्ती कि जड़ी-बूटी सन

    कि

    गेना-गुलाब, जाही-जूही कि सिंगरहार जकाँ

    जेँ कि आबि जाइ काज

    ककरहु बेर-बखत

    किनसाइत

    ज' भइए जाइ बेस पैघ त'

    होइतहुँ कोनो आम-लताम, लिच्ची-जामुन

    कि औंरा-नीम वा बड़-पीपर सन

    ताकि

    पहुँचि सकै ककरो हाथ जरूरतिक घड़ी

    मेटि सकै ककरो भूख

    भेटि सकै शीतल छाँह

    बनि सकितहुँ आश्रय

    चुट्टी-पिपड़ी, चिड़ै-चुनमुन्नी कि अपन-आनक

    कि मुइलो पाछाँ पजरितहुँ बनि आगि

    चूल्हिसँ ल' अचिया धरि ककरो

    हँ, हँ!

    एहने जँ बनि सकितहुँ किछु मरबासँ पहिने

    त' पूर भ' जाइत मोनक सभ मनोरथ!

    स्रोत :
    • पुस्तक : विसर्ग होइत स्वर (पृष्ठ 18)
    • रचनाकार : प्रणव नार्मदेय
    • प्रकाशन : नवारम्भ, पटना
    • संस्करण : 2017

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