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मलबा और उत्सव

malba aur utsav

वंदना

वंदना

मलबा और उत्सव

वंदना

और अधिकवंदना

    मृतकों

    के साम्राज्य से

    अपने धर्म को

    ढूँढ़कर निकालते हुए

    नफ़रत का इतना मलबा

    इकट्ठा कर लिया जाएगा

    कि

    इस मलबे के नीचे दबकर

    लोग मरते रहेंगे

    मृतकों को पाटकर

    जो भी निर्माण होगा

    वहाँ पर ख़ून के धब्बे 

    चीख़कर कहते हुए मिलेंगे

    हमारी मौत का कारण

    मलबा है

    धर्म से उपजे नफ़रत का मलबा!

    बदलाव की गुंजाइश

    झकझोरती है मस्तिष्क को

    मन में द्वंद्व गहराता है

    आँसुओं की सत्यता पर

    अविश्वास बैठ गया है

    खोखले वायदों की टूटन पर कराहती आवाज़ घुट रही है भीतर

    कौन है

    वह रक्तपिपासु पुरुष!

    मनभावन शब्दों का पिटारा लिए

    भावनाओं से खेलता है

    छल का मंत्र पढ़ता है सलीके से

    ज्ञान का पाखंड बघारता है 

    अनुत्तरित प्रश्नों पर बनता है

    मौनी अमावस्या का श्रेष्ठ साधक

    चिर परिचित चेहरा

    जो अनायास ही बन जाता है अपरिचित

    अपराधियों की भाँति शातिर दिमाग़

    उसका

    लूट लेना चाहता है सब कुछ

    और उसी लूट से कहलाएगा मसीहा!

    मसीहा! 

    जो पुरानी इमारत को ढहाकर

    उसके मलवे पर बना देगा ऊँची नींव 

    नई इमारत की

    और सुबह उठकर नई इमारत पर टेकेगा माथा...हर रोज़

    यह उत्सव कितना भयावह है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : वंदना
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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