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मइया आवा करौ

maiya aava karau

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

और अधिकजगजीवन मिश्र ‘जीवन’

    मइया ललना समझि दुलरावा करौ

    हम बुलाई बुलाई मुला आवा करौ

    दुख दर्द आपन कहाँ लौ बताई

    हियरे की हमरे सुनौ मोरी माई

    दुनियादारी मा भरमावा करौ

    हम बुलाई बुलाई मुला आवा करौ

    जब-जब अँखियन ते अँसुआ जो ढरकै

    दुःख के बढ़ै, मा जो सिसुकैं और निरुकैं

    दौरि के तब हमैं चुपुवावा करौ

    हम बुलाई बुलाई मुला आवा करौ

    अन्धकार मा सब भये यहि बेरिया

    मिटै देस दुनिया ते जइसे अँधेरिया

    कुछु करौ नीक हमतेउ लिखावा करौ

    हम बुलाई बुलाई मुला आवा करौ

    दुख बिपति जौनु परिहै तौ सहिबै

    अइसेउ मा कौनउ ते हम कुछ कहिबै

    आखिर हमकौ तौ कुछ समुझावा करौ

    हम बुलाई बुलाई मुला आवा करौ

    ठुकरावै जब यहु जमाना सतावै

    मनु म्वार आसा तौ तुमरिय लगावै

    अपने आँचर मा तब लुकुवावा करौ

    हम बुलाई बुलाई मुला आवा करौ

    ‘जगजीवन’ तोहसे यहै माँतु माँगै

    ‘सिरका’ सबै का बहुत नीक लागै

    कंठ मा बैठि कै तुमहे गावा करौ

    हम बुलाई बुलाई मुला आवा करौ

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिरका (अवधी गीत संग्रह) (पृष्ठ 1)
    • रचनाकार : जगजीवन मिश्र ‘जीवन’
    • प्रकाशन : भगवत मेमोरियल इंटर कॉलेज समिति, मिश्रिख, सीतापुर
    • संस्करण : 2015

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