मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
main tumse prem karta hoon
मैं चाहता हूँ कम-से-कम हमारे बीच एक उदासी बची रहे
जो रात की ठँडी हवाओं में
देती रहे मुझे आभास तुम्हारे होने का
उस उदासी को गले से लगा मैं देखता रहूँ निरंतर चाँद को
इन आम के झुरमुटों तले बैठा
और खुले इस आसमान में अपने ह्रदय का द्वार खोल
प्रकृति के समक्ष कह दूँ— कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।
बरसती बूँदों में भीगकर
जब देखता हूँ साफ़ नीले आकाश पर
सतरंगी इंद्रधनुष को बने हुए
और उसके आस-पास बहते
सफ़ेद मेघों की कोमलता को
वर्षा के बाद खगों की चंचलता को
सभी वृक्षों के पत्तों से झरते पानी से
यही कहता हूँ—कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।
रजनी में नींद को तोड़कर
ह्रदय के भावों को निचोड़कर
अपार एकांत में, उर में साहस भरकर
नयनों को बदहाल देखकर
निज से ही कहता हूँ—कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।
प्रात: काल की आभा से छटकर
होता मधुर पंछियों का स्वर
धीमी-धीमी-सी पुरवाई से
मन की चंचलता थम जाती है
उस रुकी हुई-सी गतिविधि में
निज पवित्र भावों से कहता हूँ—कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।
- रचनाकार : सिद्धांत शर्मा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.