लुसीआ मौसी की शादी
luchita mausi ki shadi
लुसीआ का किसी से शादी करने का कोई इरादा नहीं था
वह मानती कि उसकी शादी तो पहले ही ईश्वर से हो चुकी
क्लूनिके फ्रांसीसी कॉन्वेंट की
नई नवेली नन होने के बावजूद
आनकाश ज़िले के समृद्ध मुख्यालय हारास में,
उन्नीसवीं सदी के आख़िर-आख़िर में,
वह लंबी-गोरी थी, हरित पुतलियाँ,
लावण्य से भरपूर रंग-रूप,
बरने-जोन्स यादातेगाविएल रोस्सेत्ति
के चित्रों—जैसा रफायली पूर्व लावण्य
उन्नत माथा और कुछ हद तक
निष्कपट, आदर्शवादी निगाहें,
वह सब कुछ छोड़ ईश्वर से प्रेम करती थी
दया से परिपूर्ण असली ईसाई
सेवा के प्रति समर्पित, नैसर्गिक अधिकार-भाव, पहल,
क्रियाशील साधुता
और हर किसी को उसके महान् भविष्य की उम्मीद थी
कॉन्वेंट में जहाँ उसका नाम मात्र—
लुसीआ रुईस—उड़दोब्रो देल रीओ—
उसके जीवन को सार्थक बनाता था।
फ़्रांसीसी ननों के साथ उसे खाना बनाना पसंद था,
वह रसोई घर जो एकदम आधुनिक था
चटनियाँ, मसालादानियाँ, खुंभियाँ, भराई के मसाले,
और एक असाधारण रसोई भंडार
जिन्हें फ़्रांस के रसोइयों ने विकसित किया था
और जो 1789 की क्रांति का प्रभाव भी था।
और माँ के उस घर में—उसकी सौतेली बहन इसाबेल,
मेरे दादा की बहन—
उसे पेरू के व्यंजन बनाना सिखाती :
लोक्रोस, शाकुइस, लावास, कुचिकानका, तामालेस, चार्कि, हंस,
काली मक्की—शहद की बियर, मक्की की शराब,
कुरपाई पनीर के साथ भुट्टा, मूँगफली के साथ ख़रगोश का
शोरबा....
लेकिन मेरे मन कछु और है साई के कछु और,
लुसीआ एकमात्र बेटी थी
कासा आदि के नए ज़मींदार
चीले मूल के ऑगुस्तो रुईस—उड़दोब्रो की,
जिसने मेरी परदादी इसाबेल देल रीओ से शादी की थी,
उसके पति दोन मान्वैल की मृत्यु के बाद
और जो समूची सांता घाटी का सबसे दमदार ज़मींदार था।
कुछ अफ़वाह ऐसी थी
कि परदादा को ज़हर दिया गया था
क्योंकि वे पहले से छुपकर प्रेम करते थे,
जो कि काफ़ी मुश्किल काम था
हारास में, एक छोटा शहर लेकिन बड़ा नरक,
बिना किसी की निगाह पड़े।
हक़ीक़त यह है कि चीले का वह बाँका नौजवान
लेओप्लान की मूर्ति-सा ख़ूबसूरत था,
पियक्कड़, रंगीला और जुआरी
जैसे ख़्वान चार्रासकेआदो,
साहसिक, रंगीला,
और दिव्य-सी धनी औरतों से खेला करता शादी का खेल
और पिस्तौल से करता द्वंद्व-युद्ध
शादी के बाद विरासत का खेल शुरू हो गया
सौतेले बच्चों के साथ मेरे दादा और उनके भाई-बहनों के साथ—
कैसीनो में ताश और पांसा खेल कर
जो उस दौरान काय्येखोन दे वाइलास में हर जगह थे
गँवा दिये फ़ार्म और बोए खेत, खो दिए पशु,
घर और फ़सलें, ज़ेवर-फ़र्नीचर,
धन-संपदा गँवा दी
जब तक समूचे काय्येखोन में
न्यायाधीश ने जुआ खेलने पर प्रतिबंध नहीं लगाया
जवान बेटी में दूसरे नंबर के ओक्ताविओ के
मुक़दमे की सुनवाई पर।
चीलेवासी वह आउनूस्तो
एक ऐसा गलीज़ सौतेला बाप
और लती जुआरी था
जो उस ज़मीन को जुए पर लगाता
जो उसकी नहीं बल्कि
उसके सौतेले बच्चों की थी।
ओक्ताविओ ने जो एक उद्यमी था।
अदालत के समक्ष
अपने अधिकार का दावा पेश किया
और तब उस हारे हुए चीलेवासी को
हमेशा के लिए उस क्षेत्र में
जुआँ खेलने की मनाही हो गई।
जानलेवा क्रोध से पागल
उस मटकते चीले वासी का
अपने सौतेले बेटे से सामना हुआ
(जो बिल्कुल रिमबॉड की तरह था खोई निगाहों के साथ)
शाम की एक पार्टी में।
इस दुलमुल भडुआ ने
उस्तरे-सी पैनी आवाज़ में
उसे कुछ भयानक
और बिल्कुल अकल्पनीय बात बताई होगी
जिसका शक उस हट्टे-कट्टे लड़के को था
और जो उसकी माँ के बारे में थी।
उद्विग्न ओक्ताविओ
ख़ुद को अपने बेडरूम में बंद कर लेता है
उस तकरार के बाद
मौज-मस्ती जारी है
कि तभी गोली चलने की आवाज़ आती है।
एक गोली ने उसका काम तमाम कर डाला
और यहाँ ख़त्म होती है
मूर्ख ओक्ताविओ की दौड़
गोली चल चुकी थी
अभागे को भेदती हुई...
आउगूस्तो ने इस के बाद लुसीओ को बकरा बनाया
(जैसे औलिस में आगामेम्नोन ने इफिखेनिआ को)
और अपने सबसे बड़े लेनदार को उसे पेश कर दिया
जो कि दोन मारिआनीतो आराइआ था,
होटलकासीनो आराइआ का मालिक,
उसके भाई आंद्रेस 'एल कुई' से उसकी शादी कर
एक सनकी नौजवान से,
उस पर होटलकासीनो की
भारी उधारी के बदले में।
और यह पहली बाज़ी थी जो आउगूस्तो ने जीती,
और लुसीआ ने हारी,
और अट्ठारह की उम्र में कॉन्वेंट से निकाल कर
उसे नन बनने से वंचित कर दिया,
सीधे कॉन्वेंट से विवाह मंडप पर।
आँसू तो वधू के ख़ूब बहे
लेकिन बहादुरी के साथ भाग्य को भी स्वीकारा
एक कुशल रसोइए के रूप में।
उसकी शिक्षिकाओं, क्लूनी की ननों, प्रसिद्ध रसोइयों ने
उसके दहेज और उसकी शादी के भोज की ऐसी तैयारी की
कि कोई नहीं कहेगा
कि उसे उसका पता नहीं...
लेकिन लुसीआ मौसी ने मुझे ख़ुद बताया
कि उसकी शादी में एक हट्टे-कट्टे बैल,
एक बड़े जंगली सूअर, कुछ मेढ़ों और साबुत मुर्ग़ियों को मारा गया
और कम से कम तीन हज़ार अंडे इस्तेमाल हुए।
तीन हज़ार अंडे क्यों ?
मैं हक्की-बक्की थी,
मैंने तो चौबीस अंडों से ज़्यादा कभी देखे भी नहीं
और उसने मुझे बताया कि उसके कॉन्वेंट में तो
पेस्ट्री के लिए आटे के बजाए
खालिस फेंटा हुआ अंडा इस्तेमाल होता था।
बर्फ़-सा सफ़ेद झाग बनाते थे, मेरिंग मिठाई, लीमावली मेरिंग
हल्की-फुल्की पेस्ट्री और कई सारे व्यंजन होते थे
उन शादियों को यादगार बनाते थे।
कासा ग्रांद मेहमानों से भरा था
जो पूरे आँगन में फैले हुए थे
गलियारों में यहाँ-वहाँ
हर तरह के भोजन
और हर तरह के पेय का आनंद ले रहे थे
और उत्सव पूरे सात दिनों तक चलता रहा।
और शादी की रात एक निराशा में बदल गई
लुसीआ को पता चला कि कामवासना से उसे विरक्ति थी
लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी
वापसी के लिए
उसे एक लंबी, स्थायी परेशानी के लिए
कुछ हल तलाशना था
अपने पति की बेसब्री पर क़ाबू पाने के लिए
लेकिन उसके नकारात्मक शिकंजे से मुक्ति के लिए
वह उसे कभी राजी न कर सकी
लगभग बीस वर्षों के साथ के बावजूद
उनका कोई बच्चा नहीं हुआ
तो उसमें कहने वाली बात ही क्या है
और चचा आंद्रेस,
जो हारास के आर्मास चौक पर बार चलाता था,
जुए और शराब में डूबता चला गया
धीरे-धीरे अपनी कमाई
और सेहत खोता गया
जब तक कि बर्बादी के कगार तक नहीं पहुँच गया।
वह अच्छा पर कमज़ोर पात्र था
लेकिन अंकों की उसमें विलक्षण प्रतिभा थी
मन ही मन किसी संख्या का गुणा कर लेता था
जैसे 6987 को 461 से गुणा कर तुरंत 3221007 बता देता
फड़ी पर दूकान चलाने वालों में
जैसे कि कोई इंडियन,
लेकिन उसका इस्तेमाल वह सिर्फ़ मनोरंजन के लिए करता,
और जब उन्हें अपना घर हारमेइ बंदरगाह में करना पड़ा
तो बंदरगाह के दफ़्तर में उसे रोकड़िया बनाने में
उसकी वह विलक्षण प्रतिभा काम आ ही गई।
और वहीं वे कई साल रहे
अपनी 'क्लावेलीतो' बिल्ली के साथ
एक-दूसरे का चेहरा ताकते-ताकते
नीरस ज़िंदगी काटते रहे।
सिवा लूचा मौसी के
चमत्कारी हाथों की रसोई के
दूसरी कमी की क़ीमत पर
हमेशा वही रही उनके जीवन की ख़ुशी
थोड़े से सस्ते मामलों के साथ
जैसा कि सियर्स का रिवाज़ है भी
वह अपने प्यार का इज़हार करती
अपने पवित्र हाथों से बेहद स्वादिष्ट शोरबा बना कर
जिसकी बराबरी कभी कोई
नहीं कर पाया।
और चचा आंद्रेस भी चल बसा,
निकल पड़ा सुनहरे आसमान की ओर
आधी रात को सब कुछ समेट कर
लूचा मौसी हारास लौट चली
उसी पारिवारिक घोर विपत्ति में।
आउगूस्तो चल बसा था
उन्हें छोड़ गया था, ज़ाहिर है, भारी क़र्ज़ में,
ज़मीन लुटा कर, फ़सलें पहले से बिकी हुई,
मियाद ख़त्म हुई हुंडियाँ, जर्जर प्रामिसरी,
चेक हैं लेकिन खाते में पैसा नहीं...
मकान और ज़मीन की अदला-बदली तो हुई
लेकिन वे एक प्रसिद्ध खनिक, आंतेनोर रीसो पात्रोन,
के हाथों में चली गई,
जिसने मेरे दादा की एक बहन से शादी की थी,
और जिसने कासा ग्रांद पर नियंत्रण पा लिया था
और साथ ही मारकाख की ज़मीन पर भी।
चालीस के शुरुआती दौर में
मेरे पिता ओक्ताविओ अपनी मातृभूमि लौट आए,
ग्लोरिया से शादी करके
दो छोटे बच्चों के साथ
मेरी बहन ग्लोरिया और मैं
और मैं लुसीआ मौसी का लाड़ला बन गया,
उसका नखरेबाज़ लाडला, उसका नन्हा धूर्त...
और मैं उसे उसके ही बच्चे जैसा प्यार करता था
और जीवनपर्यंत मुझे भी उससे वही प्यार मिला
याद तो वही रखूँ जो कुछ असल में था।
चूँकि अब वह नन नहीं हो सकती थी, सिस्टर ही बन गई
आसीस के सेंट फ्रांसिस के तीसरे धर्मसंघ की
जो आम नागरिक को भी रख लेते हैं,
भूरे रंग की एक स्थायी पोशाक पहने
एक काली बेल्ट
और एक जोड़ी स्कंध-पट्टी के साथ
सारी दुनियादारी से
पूरी तरह अलग-थलग।
ईसाई गुण-धर्म का अभ्यास करती
स्वाभाविक रूप से, हास्य और मिठास के साथ
और सब कुछ खोने के बावजूद,
अपनी ज़मीन और धन-संपत्ति,
वह हमेशा मददगार मौसी बनी रही
परिवार के किसी न किसी सदस्य की मदद करती हुई
या उनके दर्जनों धरमपुत्रों की सेवा में
जो मक्खियों की तरह मरते थे
लेकिन वह कम से कम उनके बैंगनी कफ़न की
सुनहरे धागे से कढ़ाई करती होती
उन नीरस शामों में,
लूचा मौसी
नगरपालिका-स्कूल के भोजनकक्ष का संचालन करती
ग़रीब बच्चों के लिए
और उन्हें ऐसे खिलाती जैसे कि वे राजकुमार हों
सूअर के गोश्त के साथ भेड़ का खाँग
दूध और ताज़ा पनीर के साथ सेमवाला गोश्त
गाढ़े शोरबे के साथ गोश्त-टिक्का
और डिज़र्ट में दिव्य जैली
हारास की वह सबसे बेहतरीन रसोइया थी
और यह वही थी जो शानदार रात्रिभोज तैयार करती
करोड़पति चाची क्लोतील्दे के घर,
और हमारे घर पर भी, कवि के घर,
सभी बड़े अवसरों पर
आम-पारिवारिक, संक्षेप में कहें तो :
शादी, बपतिस्म, समारोहों, अन्त्येष्टि,
जन्मदिन, क्रिसमस, विद्वानों की दावतों में, नए साल पर,
आनंदोत्सवों पर,
राष्ट्रीय दिवसों, सेंट ख़्वान उत्सव, खूस्तदेह पर्व,
मक्का की बोआई, गेहूँ की दंवरी,
बड़े-बड़े बर्तनों में किण्वित मक्का,
उस क़स्बे की सर्वोत्तम परंपराओं में,
मेरी मौसी लुचीता का दिल बहुत बड़ा है।
जो भोजन वह हमें कराती है, उसकी छवि उसमें दिखती
क्योंकि उसमें प्यार छुपा होता है, प्यार ही
सर्वश्रेष्ठ मसाला, जादुई स्पर्श है प्यार
जो उसके सारे पकवानों में मिला होता है
नाश्ता हो, दोपहर का भोजन या रात्रि भोजन।
और इस तरह चढ़ा मेरी और मेरी बहन की जीभ पर स्वाद
वे पाँच स्वाद जो
पेरू के पकवानों में ख़ास तौर से है
नमकीन, मीठा, खट्टा, तीखा और मसालेदार
(और वह विशिष्ट पेरुई स्वाद जो सारी कमी पूरी करता है,
और जिसकी पहचान को नाम देना बाक़ी है)
और इन सालों के दरमियान मेरी बहन ग्लोरिया रसोइया महाराज
बन गई ख़ैर मौसी लुचीता का पवित्र हाथ तो विरासत
में मिला ही था
और आज वह पेरू के महान् रसोइयों में से एक
और मैं तो ठहरा चटोरा, तो पेरू पाकशाला पर पुस्तक लिख मारी
जो कि दुनिया भर में मशहूर हो गई (मेरी यही उम्मीद है)
और जो है भी मौसी को ही समर्पित।
कहते हैं लुचीता मौसी का निधन पावन ख्याति के साथ हुआ
पिछले अस्सी वर्षों के बाद भी
किसी को कोई शक नहीं कि वह सीधे स्वर्ग नहीं गई
जहाँ अभी वह बना रही होगी
बादलों के साथ मेरिंग मिठाई, सितारों के साथ दिव्य पकवान
तारामंडल के साथ दूध-अंडा-शराब का पेय
और सर्पिल आकाशगंगाओं के साथ लज़ीज़ जैली।
- पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 265)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : रोदोल्फो इनोस्नोसा
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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