Font by Mehr Nastaliq Web

लहरें

lahren

आकांक्षा

अन्य

अन्य

आकांक्षा

लहरें

आकांक्षा

और अधिकआकांक्षा

    आज समुद्र के किनारे बैठ

    तट से लड़ती लहरों को मैंने

    आँख मूँद कर सुना,

    लहरों की आवाज़ मुझे

    फटते हुए बादल-सी लगी।

    पानी के ये ग़ुब्बारे,

    क्रंदन नहीं करते, दहाड़ते हैं।

    बादलों की गर्ज़न में

    लहरों का शोर बसा है

    वही वेग, वही तेज,

    जो भले ही प्रायः

    विनाश का कारण बन जाता है,

    परंतु सजीवता का विभ्रम भी तो यही है।

    बिल्कुल वैसे ही

    जैसे मुझमें, तुम।

    हाथ से फिसल कर भी रेत,

    रेत ही होती है

    तपते दिन में तट की रेत

    पैरों को शीतलता

    रूह को गर्माहट देकर

    हमें घसीटती है गहराई की ओर

    और हम चल पड़ते है।

    रेत, बादल और अंतहीन से दीखते

    समुद्र के पास बैठी मैं

    जब आँख मूँदती हूँ

    तो जान पड़ता है

    मैं बादल पर गई हूँ, उपज कर समुद्र से

    बादल समुद्र से ही तो उपजता है,

    बनता है, घिरता है

    तो कभी बनाता है इंद्रधनुष

    बिल्कुल वैसे ही,

    जैसे तुमसे, मैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उड़हुल का फूल (पृष्ठ 54)
    • रचनाकार : आकांक्षा
    • प्रकाशन : आईसेक्ट पब्लिकेशन
    • संस्करण : 2023

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY