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कीन्हेउ हमरि जुदाई

kinheu hamari judai

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

कीन्हेउ हमरि जुदाई

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

और अधिकजगजीवन मिश्र ‘जीवन’

    किन अपराध बिसारेउ मइया कीन्हेंउ हमरि जुदाई

    दया ना तोहि आयी मोरी माई-2

    गाँव गलिन तीर परोसिन की भरि आयी अँखियाँ

    मुँहु लुकुवाए बप्पा रोंवइँ-रोंवइँ मिलि-मिलि सखियाँ

    सिसुकि-सिसुकि-कै बहिनी रोवइ तड़पि-तड़पि कै भाई

    दया ना तोहि आयी मोरी माई-2

    बैरिन के अस घरते काढ़ेउ सगरो नेह भुलाई

    छूटो देसु दुअरिया छूटी भाई भौजाई

    तुमतउ जनतिय हउ अपनेन की होति हइ कईसि जुदाई

    दया ना तोहि आयी मोरी माई-2

    नउ महिना हमका लइ घूमीं तबहूँ थकी हारी

    अँसुआ बहइँ करेजो निकरइ देखि हमरि बीमारी

    रहउँ करेजो का टुकड़ा तउ फिरि कैसे बिसराई

    दया ना तोहि आयी मोरी माई-2

    भइया जउँ के खेत बने अउ बिटिया धान कियरिया

    घरु परिवार सबइ छूटो अउ छूटी बाग बयरिया

    दर-दर भटकावति हमका यह किसमतिया हरजाई

    दया ना तोहि आयी मोरी माई-2

    समझउती हउ वए बाप हइँ वए हँइ अब महतारी

    घरउ तुमारो वहइ औ—उनहेन की बनउ पियारी

    जउनुइ अपने रहइँ अभइ लौ समझन लगे पराई

    दया ना तोहि आयी मोरी माई-2

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिरका (अवधी गीत संग्रह) (पृष्ठ 4)
    • रचनाकार : जगजीवन मिश्र ‘जीवन’
    • प्रकाशन : भगवत मेमोरियल इंटर कॉलेज समिति, मिश्रिख, सीतापुर
    • संस्करण : 2015

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