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खिड़की के भीतर और बाहर

khiDki ke bhitar aur bahar

अनुवाद : सुरेश सलिल

यानिस रित्सोस

अन्य

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यानिस रित्सोस

खिड़की के भीतर और बाहर

यानिस रित्सोस

और अधिकयानिस रित्सोस

    बाहर धूप में नहाए बड़े-बड़े बादल

    घाटी में गिरजे की पसरी परछाई।

    अँगौछे में लिपटी रोटी पेड़ पर टाँगी हुई।

    पहाड़ों की तरफ़ से बहती-आती हवा

    जीने के नीचे की भूलभलैयों में घुसकर

    गुम हो जाती हुई।

    भीतर, खिड़की के पास दिखती औरत

    बुन रही है एक ऊनी बंडी,

    मर्द उतारता है अपने जूते, देखता है ग़ौर से

    अपने पैरों को—अपने नंगे पैरों को,

    जो ज़मीन पर टीके हैं।

    औरत अपनी बुनाई की सलाइयाँ एक तरफ़

    रखती है, उठती है, किंचित् झिझकती है

    फिर उठाती है जूते मर्द के,

    हाथ डालती है उनमें अपने,

    झुकती है और बिस्तर में रेंग जाती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 233)
    • रचनाकार : यानिस रित्सोस
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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