Font by Mehr Nastaliq Web

कलंक-लिप्सा

kalank lipsa

हंसराज

अन्य

अन्य

हंसराज

कलंक-लिप्सा

हंसराज

और अधिकहंसराज

    चान, अहाँक भावुक इजोरियामे

    हम कतोक खेप नहायल छी

    भसआयल बौआयल छी

    कतोक खेप मने पथभ्रष्ट भेल छी

    अपन सम्पूर्ण अस्तित्व दान दऽ।

    मुदा अहाँक भावुक इजोरियामे

    हमरा आइ धरि भाषा नहि आयल

    जाहि बलेँ केओ अपन सम्पूर्णक अर्पण करय

    हम पूर्णताक संग ककरो समर्पण ग्रहण करी।

    अहीँ थिकहुँ हमरालोकनिक साक्षी

    तेँ चान, अहीँसँ हम प्रश्न करब

    ककरो शब्दकोष कोना बदलि जाइत छैक?

    लक्षणा व्यंजना कोना अभिधा भऽ जाइत छैक?

    शिथिल होइत व्याकरणक बन्धन

    दुर्बल भेल शब्द-शक्ति

    प्रयोजनवश दूरत्व कोना निकट होइछ?

    नारीक मान पुरुषक स्वाभिमान

    स्वार्थक तापमे पघिलि-पघिलि तरल होइत

    कठिन कठोर

    वैह ऊपरसँ सरल भेल?

    चान, अहाँक भावुक इजोरियामे

    हम बराबरि नहायल छी

    मुदा आइ हमरा

    अहाँक कलंकहिक वरण-लिप्सा जागल अछि

    कारण, अनेकानेक शोभायुक्त

    नील नभक मध्य

    शीतल ज्योत्स्ना अमृतमय चान,

    कलंकक अहाँकेँ कोनो उपयोगिता नहि।

    मुदा हमरा वैह कलंक भऽ जायत

    आगत दिनखेपन-बल

    बीतत दिन सुख-शान्तिक

    ओहि बल, ओही धन!

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन मैथिली कविता (पृष्ठ 76)
    • संपादक : भीमनाथ झा, मोहन भारद्वाज
    • रचनाकार : हंसराज
    • प्रकाशन : साहित्य अकादमी
    • संस्करण : 1988

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY