कहिया धरि?
kahiya dhari?
असगर बैसल-बैसल हम
उबिया गेल छी।
हमर मोन पंचर भऽ गेल अछि।
ई बँसबिट्टीक भीतरका संसार
बाहरक चहल-पहल प्रेम-अप्रेम—
हमरा आब अनसोहाँत लागि रहल।
ई जिनगीक बोझ सान्त्वनाक रस्सीसँ
बान्हि कए उघैत रहब कहिया धरि?
कहिया धरि रंगीन सपनाक बर्तनमे
आशाक माँटि लगबैत रहब?
कहिया धरि? कहिया धरि?...?
—हमरा नहि फुरा रहल अछि
कोन इजोत दिस जाउ?
यात्राक परिणति की हैत?
कोन एहन मेला अछि जाहिमे
अपन अस्तित्वकेँ हरा लिअऽ?
एहि 'कैक्टस'सँ भरल वातावरणक
सेटपर कहिया धरि—
एक्टिंग करैत रहू?
हमर धैर्यक शर्बत आब
पूर्णतया निघटि गेल अछि।
आब हम अपन मोनक गिलासमे
एकरा ढारि नहि सकैत छी।
कतेक दिन तक हम कृत्रिम साँस
लैत रहू? 'कैक्टस'क काँट हमर
देहके रहि-रहि बेधि रहल।
लहुलहुआन भेल अपन देहकेँ
कहिया धरि देखैत रहब—
फूटल अइनामे?
कहिया धरि, कहिया धरि?
- पुस्तक : चक्रव्यूह पसरैत (पृष्ठ 45)
- रचनाकार : अशोक
- प्रकाशन : नवारम्भ
- संस्करण : 2023
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