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जो मैं देखता हूँ और जो मैं कहता हूँ, उसके बीच...

jo main dekhta hoon aur jo main kahta hoon, uske beech. . .

अनुवाद : सुरेश सलिल

ओक्ताविओ पाज़

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ओक्ताविओ पाज़

जो मैं देखता हूँ और जो मैं कहता हूँ, उसके बीच...

ओक्ताविओ पाज़

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    (एक)

    जो मैं देखता हूँ और जो मैं कहता हूँ, उसके बीच

    जो मैं कहता हूँ और जो मैं अनकहा रखता हूँ, उसके बीच

    जो मैं अनकहा रखता हूँ और जो मैं सपना देखता हूँ, उसके बीच

    जो मैं सपना देखता हूँ और जो मैं भूल जाता हूँ, उसके बीच :

    कविता।

    वह फिसलती रहती है

    हाँ और नहीं के बीच,

    कहती है जो मैं अनकहा रखता हूँ,

    अनकहा रखती है

    जो मैं कहता हूँ,

    सपना देखती है

    जो मैं भूल जाता हूँ।

    वह भाषा नहीं है :

    वह एक कर्म है।

    वह एक भाषिक कर्म है।

    कविता

    कहती है और सुनती है :

    वह वास्तविक है।

    और जैसे ही मैं कहता हूँ :

    कि 'वह वास्तविक है,

    वह अदृश्य हो जाती है।

    तब क्या वह अधिक वास्तविक हुई?

    (दो)

    मूर्त विचार,

    अमूर्त

    शब्द :

    कविता

    प्रकट और अप्रकट होती है

    जो है

    और जो नहीं है के बीच।

    वह प्रतिबिंबों को

    बुनती और उधेड़ती है।

    कविता

    आँखों को छितराती है एक सफ़हे पर

    शब्दों को छितराती है हमारी आँखों पर।

    आँखें बोलती हैं

    शब्द देखते हैं

    निगाहें सोचती हैं।

    विचारों को

    सुनने के लिए

    देखो—

    जो हम कहते हैं,

    छुओ

    किसी विचार की देह।

    आँखें बंद होती हैं

    तब शब्द खुलते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 275)
    • रचनाकार : ओक्ताविओ पाज़
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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