जो लोग एक दिन चले गए
भूख की आग के वश होकर
कमाने के लिए
असम या कलकत्ता
नहीं आए लौटकर उनमें से कई लोग
जिनको कलकत्ता और असम की स्त्रियों ने
बना लिया था भेड़
और गले में डालकर साँकल
बाँधे रखती थीं अपने पीढ़ा के पाये से
उनकी पत्नियाँ करती रहतीं उनकी प्रतीक्षा
वर्षों तक
और छत की मुँडेर से काले कौवे को उड़ाती रहतीं
जो उनके प्रिय के आने का शुभ संकेत होते थे
पर एक भेड़ बना व्यक्ति कैसे लौट सकता था
अपने देस
माँएँ अपने बच्चों को कहानी बतातीं
भेड़ बना लिए गए व्यक्तियों की
और हम बच्चे सचमुच डर जाते
कलकत्ता और असम की स्त्रियों से
जो हमें भी बहुत आसानी से बना सकती थीं भेड़
एक समय के बाद हम जान पाए
कमाने गए उन पुरुषों के बारे में
जो मुग्ध हो जाते थे
कलकत्ता और असम की
आधुनिक स्त्रियों की सुंदरता पर
और बसा लेते थे उनके साथ
अपनी नई दुनिया
बिना उस दुनिया की परवाह किए
जिसे वे काली कोसाँ छोड़ आए थे
उन पुरुषों ने छल किया
दो-दो स्त्रियों से
और कठघरे में खड़ा किया उन स्त्रियों को
जो उनकी सहचरी बनीं
और उनको जादूगरनी क़रार दिया
- रचनाकार : पूजा जिनागल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.