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जीवन गणित

jivan ganit

संदीप तोमर

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संदीप तोमर

जीवन गणित

संदीप तोमर

और अधिकसंदीप तोमर

    ज़िंदगी के गणित में 

    तुमने रेखा गणित को चुना 

    और मैं,

    मैं ख़ुद बना रहा अलजेब्रा

    मान लेता अचर को कोई चर

    और सुलझा लेता 

    उलझी हुई समीकरणों को,

    एक रोज़ जब मैंने चाहा

    ज़िंदगी का हल

    तब तुम बोली—

    रेखागणित-सी इस दुनिया में

    मैं और...और तुम 

    दो समांतर रेखाएँ

    जैसे नदी के दो तीर,

    सिर्फ़ साथ चल सकते हैं,

    दूर से एक-दूसरे को 

    देख सकते हैं, 

    शायद महसूस भी कर सकते हैं 

    लेकिन, 

    अगर ग़लती से मिल गए तो 

    अपना अस्तित्व समाप्त,

    मैंने कहना चाहा प्रतिउत्तर में—

    तिर्यक रेखाएँ भी उसी 

    रेखागणित का हिस्सा है, 

    साथ चलते हुए

    एक बार मिलती है 

    और बस एक बार मिलकर 

    फिर नहीं मिलती

    और यह मिलना 

    कोई संयोग होकर

    हो जाता है अक्सर 

    ऐतिहासिक योग

    शकुंतला का जन्म भी संभवतः

    ऐसे ही तिर्यक रेखाओं का

    अद्भुत संयोग रहा होगा

    लेकिन-तुमने 

    बाँध लिया ख़ुद को

    समांतर रेखाओं के दायरे में,

    ये दायरे मुझे अलजेब्रा से 

    निकाल समांतर रेखा की मर्यादा

    सिखाते लगते हैं

    और मैं खो जाता हूँ

    वृत्त की एक निश्चित त्रिज्या के गिर्द

    घूमते पथ से निर्मित परिधि के आकर्षण में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : संदीप तोमर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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