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झींगे बटोरते हुए

jhinge batorte hue

अनुवाद : दिनेश चमोला

टिं मो:

टिं मो:

झींगे बटोरते हुए

टिं मो:

और अधिकटिं मो:

    वर्षा के बाद

    रात के सन्नाटे में

    चिमनी के नज़दीक

    कीच और मिट्टी के डागर पर

    उछलता हुआ

    उड़ता हुआ

    खूँटीदार काला

    और सड़क पर लड़खड़ाता हुआ झींगा

    उसकी घूरती हुई बड़ी-बड़ी आँखें

    एरियल-से तने सीधे

    झींगे के

    समूह में चीख़ता

    तेज़ी से झपटता

    कानों के पर्दे फाड़ता

    छोटी लाल लुंगी में

    एक लड़का

    एक हाथ में

    लकड़ी की लालटेन पकड़े हुए

    धीमी रोशनी में

    उठाता है छोटे-छोटे झींगे

    खिली हुई

    कलगी वाला लड़का

    बाहर निकली

    फटी-फटी आँखें दिखती है उसकी

    झींगुरों की ही तरह

    सड़क पर

    सड़क के किनारे

    दौड़ता है वह

    चीख़ता हुआ इधर-उधर

    फेंकता है झींगुर थैले में

    और चिपकाए रखता है

    इसे अपनी छाती से

    लौट आता है घर

    माँ, जो देखभाल कर रही है

    बच्चे की

    फेंक देता है

    लड़खड़ाते, गुनगुनाते झींगुरों को

    खौलते पानी में

    उबलने के लिए

    सुबह चला जाएगा बच्चा

    अपने प्राथमिक स्कूल

    और बेचेगी माँ

    उबले हुए झींगुर

    स्कूल के दरवाज़े पर

    जब अध्यापक देता होगा

    पाँच उपदेश

    बच्चा अपनी मीठी आवाज़ में

    याद करेगा पाठ

    तुम नहीं लोगे

    किसी प्राणी के प्राण

    चींटी से भी विनम्र बनो

    ख़ुशी से बच्चा

    करेगा याद इस उपदेश को

    जब सुनती है माँ

    बच्चे को पढ़ती यह पाठ

    ख़ुश होगी वह

    हालाँकि वह नहीं

    समझ पाएगी यह

    कि वह क्या कह रहा है?

    स्कूल से लौटते हुए शाम को

    जब सब खाना खा लेंगे

    तो

    माँ का यह

    छोटा बच्चा

    फिर चला जाएगा

    सड़कों और गलियों में

    झींगे बटोरने

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन बर्मी कविताएँ (पृष्ठ 146)
    • संपादक : चन्द्र प्रकाश प्रभाकर 'मौतीरि'
    • रचनाकार : टिं मो:
    • प्रकाशन : इरावदी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1994

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