Font by Mehr Nastaliq Web

जंगल में रात होती थी

jangal mein raat hotee thee

पैरों के नीचे सूखे पत्ते

पापड़ की तरह फूट रहे हैं दबकर

जंगल का एकांत-भंग करते हुए

मेरे क़दम आगे बढ़ रहे हैं

क्या मेरे क़दमों में जंगल के एकांत को

बचाने की क्षमता भी है?

बहरहाल मैं आगे बढ़ता हूँ।

मेरे शर्ट के कॉलर पर जब कोई टहनी

अपनी उँगलियाँ फँसाती है तब

लगता है कि पीछे से तुम आकर मुझे रोक रही हो

यह निरा कल्पना ही है कि हर अकेलेपन में

उभरा कोई साया तुम्हारा ही भ्रम होता है

क्या तुम्हारे इस भ्रम से जंगल की उदासी काटी जा सकती है?

जंगल-जंगल होते समय उदास ज़्यादा रहता है

या जंगल कटते हुए?

उदास जंगल में उदासी काटता हुआ कोई इंसान

जंगल के कटने पर और उदास ही होगा

पर जंगल का कटना उदासी का कटना नहीं हो पाता।

दिन ढल चुका है, शाम हो रही है

जंगल में अब रात की तैयारी है

रात तैयार हो रही है

अपने पूरे अँधेरेपन के वैभव के साथ

और सुनसान सन्नाटे की गरिमा के साथ

रात जागेगी जंगल में रातभर

इस गहन अँधेरे में एक उल्लू बोल रहा है पेड़ पर

हाँ हम जिसे उल्लू कहते हैं वह पक्षी ही बोल रहा है

मैं चाहता हूँ वे भी बोलें, बतियाएँ मुझसे

जो अभी तक नहीं बोलते थे

जैसे मछली, ख़रगोश, चींटी, साँप, नेवला, गिलहरी आदि।

जो जंगल में बोलते थे क्या वे जंगल के बाहर बोलेंगे

जो जंगल में नहीं बोलते थे क्या वे बाहर बोल पाएँगे?

जंगल में गूँजने की कौतूहल के लिए शहर का इंसान

जंगल में बोलता था, जंगल कटने पर वह चुप है।

जंगल का आदमी देख रहा है जंगल के बाहर के आदमियों को

जंगल के भीतर रात बोलती थी

जंगल के बाहर रात बोल नहीं पाएगी

मेरा पड़ोस मेरा जंगल कट रहा है,

यह बात जंगल ने कल्पना भी नहीं की होगी

कि उसे यह वाक्य दुहराने का मौक़ा नहीं दिया जाएगा।

अब जंगल नहीं है वहाँ

अब वहाँ कभी रात भी नहीं होती है

क्या रात होने पाए इसीलिए जंगल काटा गया था?

रात भी काली होती है जंगल का अँधेरा भी

और जंगल के नीचे दबा कोयला भी काला ही होता है

बस कोयले से बनी बिजली काली नहीं होती

जंगल के बाहर के कालेपन का अर्थ

जंगल के भीतर के कालेपन से भिन्न होता है

जो भी हो अब जंगल में रात नहीं होती

वहाँ अब एक शहर होता है।

मैं वहाँ तब भी टहलने जाता था

मैं यहाँ अब भी टहलने आता ही हूँ

अब फ़र्श पर कान लगाकर

ज़मीन में एक बीज की अंगड़ाई नहीं सुन सकता

तब जंगल में बीज का चटकना सुनाई देता था

अब कोई भी बीज जंगल नहीं बन पाता है

बीज में जंगल होता ज़रूर है

भूख लगती है तो इन बीजों को मतलब दानों को

पकाकर खा लेता हूँ और सो जाता हूँ

सपने में अब जंगल आता है

जहाँ पर रात भी होती थी।

स्रोत :
  • रचनाकार : केतन यादव
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY