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जहाँ प्रेम साँस लेता है

jahan prem saans leta hai

प्रशांत रमण रवि

प्रशांत रमण रवि

जहाँ प्रेम साँस लेता है

प्रशांत रमण रवि

और अधिकप्रशांत रमण रवि

    तुम्हारे प्रेम की छाँव में

    धूप मखमली हो जाती है

    ओस भीगी हवा में

    इत्र की तरह घुल जाती है।

    शाम—

    शबनमी मुस्कान ओढ़ लेती है,

    और तारे

    हथेली पर रखे ख़्वाबों जैसे

    झिल-मिलाने लगते हैं।

    तुम्हारे होने से

    नदी की बहती धुन

    एक प्रार्थना-सी लगती है

    पत्तों की सरसराहट

    किसी भूले-बिसरे गीत की

    पहली पंक्ति बन जाती है।

    जब तुम्हें देखता हूँ—

    समय ठहरता नहीं,

    बल्कि फैल जाता है

    अनंत में—

    हर लम्हा ओढ़ लेता है

    रंगों की नई व्याख्या

    और हर क्षण

    बुनता है

    अर्थ का एक और गहरा सूत्र।

    तुम्हारे प्रेम में होना—

    जैसे कविता में साँस लेना

    या धरती की धड़कनों का

    मेरे हृदय से एक हो जाना।

    तुम्हारा प्यार

    सिर्फ़ एक भाव नहीं—

    यह आँखों का मौन संवाद है,

    जहाँ डूबते ही

    हर दिशा में

    जीवन उग आता है।

    और तुम्हारे बिना—

    सब कुछ था

    मगर केवल 'था'।

    दृश्य—

    बिन अर्थ के, बेजान।

    तुम्हारे साथ—

    हर दृश्य

    जीवन की कविता बन गया है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रशांत रमण रवि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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