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जाड़े में सड़क पर

jaDe mein saDak par

अनुवाद : मदनलाल मधु

अलेक्सांद्र पूश्किन

अन्य

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अलेक्सांद्र पूश्किन

जाड़े में सड़क पर

अलेक्सांद्र पूश्किन

और अधिकअलेक्सांद्र पूश्किन

     

    लहर-लहरिया कुहरा नभ में छाया है
    उसे चीर शशि अपनी राह बनाता है,
    औ’ उदास-से वन-आँगन, वन-प्रांगन में
    वह उदास-सी चंद्र-छटा फैलाता है।
    सूना-सूना बर्फ़-ढका पथ सम्मुख है
    और त्रोइका1 उस पर भागी जाती है,
    सम स्वर में उस पर बजती टन-टन घंटी
    मन में व्याकुल तड़प, ऊब उपजाती है।

    कोचवान के लंबे गीतों-गानों में
    मुझको मानो कुछ अपना-सा लगता है,
    कभी ख़ुशी से मस्त-तरंगित हो उठता
    कभी व्यथा-पीड़ा से हृदय कसकता है...

    कहीं झोंपड़ा-झुग्गी, कोई दीप नहीं...
    बस, सुनसान, बर्फ़ का ही है राज यहाँ,
    धारीदार मील के खंभे ही केवल
    मुझको जब-तब पड़ें दिखाई जहाँ-तहाँ।

    ऊब, उदासी मन को घेरे...कल, नीना!
    कल मैं प्यारी, पास तुम्हारे आऊँगा,
    मगन-हृदय से बैठ निकट अँगीठी के
    तुमको ही देखूँगा, नहीं अघाऊँगा।

    टिक-टिक करती नियत चक्र पर चल सूई
    बीती आधी रात हमें बतलाएगी,
    निकट न कोई रहे पराया, वह तब भी
    हम दोनों को अलग नहीं कर पाएगी।

    घोर उदासी, नीना! पथ है ऊब भरा
    कोचवान भी अब तो चुप हो ऊँघ रहा,
    समस्वर में बस घंटी बजती जाती है
    और चाँद के मुख पर छाया है कुहरा।

                      

    स्रोत :
    • पुस्तक : अलेक्सान्द्र पूश्किन चुनी हुई रचनाएँ (खंड-1) (पृष्ठ 20)
    • रचनाकार : अलेक्सान्द्र पूश्किन
    • प्रकाशन : प्रगति प्रकाशन, मास्को
    • संस्करण : 1982

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