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विडम्बना

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सुरेन्द्र झा 'सुमन'

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और अधिकसुरेन्द्र झा 'सुमन'

    जे शूल पर झुलइछ तनिक पद, फूल अहँ कि चढ़ायबे?

    जे मूल के रचइछ स्वयम् तनि चूल अहँ कि सजायबे।

    जे वज्रभुज करवाल भँजइछ, तनि कनक-केयूर कीं?

    जे गिरि-शिखर अभ्यस्त पद, रथ उपर तनि चढ़ायबे॥

    ज्वल अनल ज्वाला जनि नयन, सुरमा चसमा तनि रुचिर।

    जे शर-निकर उर पर सहथि, तनि हित हार गढ़ायबे॥

    जे कंटकित मुकुटक विकट भट, स्तवक कुसुमक स्तुति तनि।

    जे गिरिक निर्झर जल पिपासु, कूप-जल भरि लायबे॥

    जे सागरक उत्ताल लहरि विशाल तरइछ वितत-भुज।

    पुनि तनिक क्रीड़ा-केलि हित गृह-वापिका खुनायबे॥

    जे मुक्त प्रकृतिक काननक संचरण-पटु पंचानने।

    तनि घेर-बेढ़क हेतु पुनि पिंजर हन्त रचायबे॥

    जनि राजभवनक शयन, रानिक नयन, शिशु वयनहु रुचिर।

    निष्क्रमण रोध कय सकल, अनुरोध तनि जनायबे।

    जे पाशुपत उपलब्धि हित छथि पशुपतिक संधान मे।

    तिय रूपसी छवि उर्वशी तनि आगु व्यर्थ नचायबे॥

    जे महाभारत समर उत्कट शान्त चित गीता रचथि।

    तनि सान्त्वना मे गुनगुना रस-गीत धनि की गायबे?

    जनि भृकुटि तनितहिँ क्षुब्ध सागर शान्त, सेतु निबन्धने।

    तनि सन्तरण हित काठ एकठा नाओ अकठ चलायबे॥

    जे धूलि अणु-परमाणु गढ़इछ शक्ति गीत परम्परा।

    तनि श्रम पुरस्कृत कर'क हित अहँ कनक-कन कि गनायबे॥

    जे अन्तरिक्ष-परीक्षणक हित ग्रह गनक भ्रमनक रसी।

    तनि श्रम हरण हित विश्रमक तृण-छाउनी छरायबे॥

    जे घनक धुनि रस-सजल साओन-भादवक सजइछ घटा।

    पद-बिन्दु अनुपद सिंचना तनि पथ हन्त! पटायबे!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : रचना संचयन (पृष्ठ 53)
    • संपादक : चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’/ शंकरदेव झा
    • रचनाकार : सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2012

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