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इरावती की साड़ी

iravati ki saDi

प्रमिला शंकर

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प्रमिला शंकर

इरावती की साड़ी

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और अधिकप्रमिला शंकर

    इरावती

    अक्सर मेरी अलमारी की साड़ियाँ जमाते हुए

    पूछती—

    “मैडम, ये कितने की होगी?”

    इरावती

    हमेशा साफ़-सुथरी, कलफ़ लगी सूती साड़ी में आती,

    देखती तो लगता—

    कपड़े पहनना सिर्फ़ ज़रूरत नहीं,

    उसके लिए एक कला है।

    मैं सोचती रहती—

    कभी एक दिन

    उसे कोई अच्छी सूती साड़ी दूँगी।

    उस दिन

    जब मैं सिल्वर वर्क वाली आसमानी साड़ी पहने थी,

    इरावती ने

    साड़ी पर हाथ फिराया,

    पूछा—

    “कहाँ से ली मैम? कितने की है?”

    मैंने कहा,

    मेहता मार्केट से।

    महँगी है—

    तू नहीं ले सकती।

    वो चुप रही।

    मैं नज़रें फेरकर

    अपने दिन में खो गई।

    एक हफ़्ते बाद

    वो वैसी ही साड़ी पहनकर आई।

    ठीक वही रंग, वही किनारा, वही चमक।

    मेरा दिल धक से रह गया।

    शंका हुई—

    मैंने अलमारी खोली।

    मेरी साड़ी वहीं थी—

    सलीके से रखी।

    मैंने पूछा—

    कहाँ से ली?

    उसने कहा—

    मेहता मार्केट से।

    पर इतनी महँगी साड़ी?

    मैंने अचरज से कहा।

    वो मुस्कराई।

    आँखों में ठहराव था।

    कहा—

    हाँ मैम, मैं ले सकती हूँ।

    चाँदी की पायल बेच दी—

    साड़ी ले ली।

    मैं ले सकती हूँ।

    उसका स्वर धीमा,

    लेकिन पूर्ण था।

    मुझे

    अपने शब्दों पर पछतावा हुआ।

    मैंने देखा—

    वो सिर्फ़ कामवाली नहीं थी,

    वो अपनी इच्छा की मालिक थी।

    मैं मुस्कराई,

    धीरे से कहा—

    वाह, इरावती!

    तू सच में…कुछ भी ले सकती है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रमिला शंकर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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