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दीवार

divar

फरूग़ फरूख़ज़ाद

और अधिकफरूग़ फरूख़ज़ाद

    बीते, सर्द, भागते क्षणों के बीच

    अपने बियावान में

    वे जंगली जुगनू आँखें लिए

    घेर लाओ मेरे चारों ओर

    एक दीवार—

    कि भागकर तुमसे मैं

    पथहीन उस पथ पर चलूँ

    जब तलक दीखे मुझे

    चाँद की मैली सलवटों

    में घाटियाँ,

    जब तलक ना धोऊँ अपनी देह

    मैं उजास के फ़व्वारों में।

    रंगीली धुँधआती

    गर्मी की एक सुबह, मैं

    भर लूँगी अपना आँचल

    खेत के कास-फूलों से

    और गाँव की ढलुआ छतों से

    चौंक-कर सुनूँगी मुर्ग़े की बाँग।

    भागकर तुमसे मैं

    घाटी की कोर तक जाऊँगी

    और अपने तलवों से

    दबाऊँगी धरती को

    जब सोख ना ले वह

    ओस दूब की।

    भागकर तुमसे मैं,

    जाऊँगी उस वीरान तट तक

    जहाँ बादलों की घनी छाया में

    खोई चट्टानों में

    सीखूँगी फिर

    सागर का तूफ़ानी नाच।

    बहुत दूर ढलते सूर्य में

    जंगली कबूतरों की तरह

    देखूँगी अपने पैरों तले

    मैं, पहाड़, मैदान और आकाश

    और सूखी झाड़ियों के बीच

    सुनूँगी मैं

    खेत की गौरयों का

    हरैला गान।

    भाग कर तुमसे मैं

    खोलूँगी वह दिशा

    जो जाती होगी कामनाओं के शहर।

    उस शहर में

    स्वप्न की प्राचीर से

    झूलती होगी एक सुनहरी लट

    पर ख़ामोश चीख़-सी

    तुम्हारी आँखें

    धुँधला देंगी मेरी नज़र

    जैसा तुम्हारा घना रहस्य

    घेरेगा मुझे दीवार-सा

    आख़िरकार एक दिन

    भाग जाऊँगी मैं

    संदेह पकने के भ्रम से दूर

    और सतरंगे सपनीले फूलों

    की सुगंध-सी निखरकर

    घुल जाऊँगी

    रात की ठंडी बयार के

    घने घुँघराले केशों में,

    और पहुँच जाऊँगी

    एक कोलाहल रहित संसार

    के अमृत महोत्सव में

    ठेठ सूरज तक।

    हौले से झूलूँगी मैं

    सुनहरे बादल के झूले में

    जो आकाश में

    एक उजली किरण-सा

    अपनी हथेली बढ़ाए

    गा रहा होगा कोई गान।

    वहीं हूँ मैं भी

    स्वतंत्र प्रसन्न—

    और बुनती हूँ

    इस संसार की स्मृतियाँ

    क्योंकि तुम्हारी सम्मोहिनी आँखें

    ढूँढ़ लेती हैं

    उसमें दृश्य

    जैसे तुम्हारा घना रहस्य

    घेरता है मुझे

    दीवार-सा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दरवाज़े में कोई चाबी नहीं (पृष्ठ 260)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : फरूग़ फरूख़ज़ाद
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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