पिता
मैं तुम्हारे दिए हुए सारे काम ख़ुशी से करना चाहता था
लेकिन पता नहीं क्या सोचकर तुमने मुझे ज़्यादा काम दिए नहीं
ज़्यादातर रातों में
तुमने मुझे शराब की बोतलें लेने ही भेजा था
बहुत साल पहले
एक दिन जब तुमने अपनी क़मीज़
मेरे हाथों में थमा दी थी
तो बहुत ख़ुशी से मैंने उसे
तुम्हारे कमरे में खूँटी पर टाँग दिया था
उस दिन मैंने धीमे-से उसे सूँघ लिया था
तब से एक गंध मेरे ज़ेहन में रहने लगी
फिर माँ के कहने पर
वह क़मीज़ मैंने किसी को दे दी
भादों के उन दिनों में
मैं देर तक उस आदमी को खोजता रहा
जिसे तुम्हारी क़मीज़ पहनने में आ जाए
इसके बाद मैं जब भी
किसी को गले मिलते हुए देखता हूँ
तो मुझे तुम्हारी क़मीज़ याद आ जाती है
फिर जब मैं इस तरफ़ अकेला रह गया
तब मैं सोचता था कि
मुझे तुम्हारे लिए एक कविता लिखनी चाहिए
लेकिन इस नंगी भावुकता के प्रदर्शन से मैं डर गया
मेरे पास कोई विकल्प नहीं था—
तुम्हें गले लगाने का
तो मैं सिगरेट को उँगलियों से छूकर सूँघ लिया करता था
फिर एक दिन मैंने बोतल से थोड़ी-सी शराब अपनी कॉलर के पास उड़ेल ली
माँ जब मुझे चिट्ठियाँ लिखती थी
तो मैं उन्हें पढ़ने से पहले सूँघता था
मुझे पता था उन चिट्ठियों को
तुम ही मेरे हॉस्टल के पते पर पोस्ट करते थे
तुम्हारे जाने के बाद
जब मैं थोड़ा और बड़ा हो गया
मैं तुम्हारी तरह जीने के सारे तरीक़े सीख चुका था
अपनी मूँछों पर हाथ फेरने के तरीक़ों
और पैर हिलाने की बेचैनियों में तुम थोड़ा-सा रह गए
अब भी जब किसी रात को मैं करवट बदलता हूँ
तो दीवार पर एक खूँटी गड़ी देखता हूँ
और उस पर लटकती हुई एक तस्वीर
बहुत सालों बाद अब जाकर मैं समझ पाया
कि वक़्त के साथ तुमने अपनी गंध बदल ली थी
अब तुम मेरे पसीने में नहीं
गुड़ और घी से लिपटी हुई गंध के साथ महकते हो!
- रचनाकार : नवीन रांगियाल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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