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श्वेला यौं

shvela yaun

अनुवाद : दिनेश चमोला

तखिं कोड़ौ माँई

तखिं कोड़ौ माँई

श्वेला यौं

तखिं कोड़ौ माँई

और अधिकतखिं कोड़ौ माँई

    जब-जब जाएगा

    तुम्हारा ध्यान

    म्यो लुंर्ली शरह की ओर

    तो आचार्य माँई की

    ये पंक्तियाँ ही होंगी

    तुम्हारे लिए एकमात्र सांत्वना।

    श्वेला यौं के

    नाम से प्रसिद्ध ऊः मिं: यौं

    जो उस शहर का

    सूर्य के समान

    प्रतापी नायक था

    जिसने अपने लोगों को

    अँग्रेज़ों के विरुद्ध

    लोहा लेने के लिए

    तैयार किया।

    भव्य संसार के

    उस पवित्र क्षण का

    लाभ उठाने में असमर्थ

    हमने

    दुर्भाग्य से

    खो दी बर्मी शान

    जब मांडले की

    पराजय हुई

    और भाग्य देश के अनुकूल था

    तो

    ज़बरन

    बर्मी ने बर्मी से

    शत्रुता मोल ली

    तथा दुश्मन के संकट की

    उपेक्षा की

    और आपस में ही

    जूझने के लिए

    तैयार हुए।

    एक रमणीय पहाड़ी के

    म्यिंमनी शिविर से

    कुछ अयोग्य

    नेता लुक-छिपकर

    दबे पाँव भाग निकले

    सुरक्षित स्थानों में

    जहाँ उन्होंने

    बता डाले

    अपने ही नायक के भेद

    और शायद यही थी—

    भाग्य की विडंबना

    वह अँग्रेज़ों को रौंद देगा

    जो कि है

    टौं टिव शहर का

    प्रतापी नायक

    जो कि पकड़ा गया था

    अपने ही लोगों के

    विश्वासघात से

    विजय पाने से पूर्व

    अपने को सभ्य कहने वाले

    अँग्रेज़

    जो दावा करते थे

    दुश्मन से अच्छे व्यवहार का

    उन्होंने ही

    काट डाला

    श्वेला यौं का सिर

    चार शिविर वाले गाँव में

    घाटी के मेरे शिष्यो, मठ वासियो!

    धैर्य दो

    स्वयं को

    भविष्यवाणियों एवं काव्य पंक्तियों के साथ,

    मांडले शहर में

    प्रतापी श्वेला यौं की

    मौत से

    धुँधला गए हैं

    सूर्य और चाँद

    इससे पहले कि

    देश में राज्य करे

    अँधकार घिर आया

    और विजय पुष्प श्वेला यौं

    औं सां: का पितामह

    सदा-सदा के लिए मुरझा गया

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन बर्मी कविताएँ (पृष्ठ 33)
    • संपादक : चन्द्र प्रकाश प्रभाकर 'मौतीरि'
    • रचनाकार : तखिं कोड़ौ माँई
    • प्रकाशन : इरावदी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1994

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