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अतिकाल

हरेकृष्ण झा

अन्य

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और अधिकहरेकृष्ण झा

    कातिकक इजोरिया पख,

    अपराजिताक फूल

    निचैन भ'क'

    उदासी गाबि रहल अछि।

    ठाम-ठाम,

    तीन चासक बाद

    सरिआम भेल खेत मे,

    बतासाक चूरक पथार

    लागल अछि,

    ताहि पर

    उज्जर परबाक हाँज

    बहिन सभक करुनाक भास पर

    घुटकैत जा रहल अछि।

    कातिकक इजोरिया पख,

    पिठार सँ नीपल राति मे

    सभ किछु

    जलोदीप भेल अछि,

    एना नहि जे

    बहिन लोकनिक हृदयक

    दाहबोह सँ!

    धानक सिताहल शीश जेकाँ सुर

    निकसैत अछि

    हुनका लोकनिक कंठ सँ,

    सिहकैत बसात मे

    झिलहरि खेलाइत जेना कि,

    पिपनी सँ झहरैत बुन्नीक

    झालरि जेकाँ गीत

    रातिक तानीभरनी मे

    खोहि दैत अछि।

    कातिकक इजोरिया पख,

    रातिक आत्मा मे

    सरीफाक आत्मा आबि '

    बसि जाइत अछि!

    भेँटक फूल सँ नेहाल भेल

    राति मे,

    गीतक एकेक टा पाँती

    लहराइत अछि

    मोहलीसौंफक

    पात जेकाँ;

    कासक हुलास मे

    भसिआएल जाइत राति मे,

    बहिन लोकनिक हियाक अतल सँ

    उठैत अछि करुनाक लहरि

    गीतक लच्छा बनि- बनि!

    एहि लच्छा सँ

    लेपटाइत अछि,

    लेपटाइत अछि आत्मा हमर,

    मुदा रुक्खे रहि जाइत अछि,

    रुच्छे रहि जाइत अछि।

    आइ धरि जे पानक पीक

    नेरबैत रहलाह अछि

    भाइ लोकनि,

    ताहि मे गंगा जमुनाक बाढ़ि

    अबैत रहल अछि

    बहिन सभक लेल!

    बाबाक सम्पति पर

    चकरी मारने

    चौँचक रहल छथि भाइ लोकनि

    धारक ओहि पार,

    तेजने ओकर आस

    करुनमा केने ठाढ़ि

    रहल छथि

    बहिन लोकनि

    धारक एहि पार!

    कहिया ने कहिया

    सँ बनलि दुरदेसनी,

    एना नहि जे

    धेने छथि

    सिन्दूरे टाक आस,

    मोटरिये टाक आस!

    अजोह धानक दूध सँ जनमल

    सूत नेहक

    कहिया धरि जुटत

    भाइ बहिनिक बीच?

    नेराएल पीक मे

    गंगा जमुनाक बाढ़ि

    अनैत रहतीह

    बहिन लोकनि कहिया धरि?

    करुनमा केने

    ठाढ़ि रहतीह

    भाइ लोकनिक सोझाँ

    आर कहिया धरि?

    अतिकाल अतिकाल

    अतिकाल

    भ' गेल'छि

    हे बहिन लोकनि आब,

    घोर बिकाल!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : एना त नहि जे (पृष्ठ 115)
    • रचनाकार : हरेकृष्ण झा
    • प्रकाशन : रक्तमंजरी प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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