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ख़ुशी

khushi

अनुवाद : रमेश कौशिक

मिर्दज़ा केम्पे

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और अधिकमिर्दज़ा केम्पे

    बिना कर्म के मिले भाग्य-फल सहज सफलता

    मेरे प्रति मन में

    रखे कोई ऐसी इच्छा

    मुझे नहीं संतोष और सुख कभी मिलेगा

    जब तक अपनी शक्ति और साहस से ही

    कुछ नहीं लिया हो

    मेरे लिए ख़ुशी चाहो तो ऐसी

    जिससे बुज़दिल कतराते हैं

    और शांतिप्रिय जिसको नहीं समझ पाते हैं

    उदासीन चिंतन में आग लगाने वाली

    जो अशक्त हाथों में नहीं ठहर पाती है

    ऐसी ख़ुशी

    नज़र जो अपनी

    अपने से आगे रखती है

    जो आरामगाह के भीतर

    नहीं पड़ी झपकी लेती है

    जितना ज़्यादा दें औरों को

    उससे ज़्यादा मिलती ख़ुद को

    जीवन एक निहाई जिस पर

    चोट लगाती है यह कसकर

    सच्ची ख़ुशी कड़ी होती है

    बुज़दिल से चोरों से बचकर यह रहती है

    संताप कष्ट और संघर्षों में

    सारी जीवन-शक्ति खपाने पर मिलती है

    हममें से कोई

    आज याकि आने वाले वर्षों में

    सहज सफलताओं की

    नहीं कामना करे कभी

    कष्टों संघर्षों में ही

    जन्मा करते हैं नए मनस्वी

    अवसाद प्रभावों के भीतर ही

    जिनको ख़ुशियाँ मिलतीं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 161)
    • रचनाकार : मिर्दज़ा केम्पे
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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