Font by Mehr Nastaliq Web

सिलबट्टा

silbatta

हेमंत कुकरेती

अन्य

अन्य

हेमंत कुकरेती

सिलबट्टा

हेमंत कुकरेती

और अधिकहेमंत कुकरेती

    रोचक तथ्य

    इस कविता के लिए कवि को भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार प्राप्त हुआ।

    जाने कहाँ की सभ्यता से निकला है वह

    पत्थर नहीं है वह केवल

    एक दुनिया है उसकी

    और हमारी रसोई में वह सबसे पुरानी धरती है

    जिस पर सबसे पहली माँ जीवन के स्वाद को बढ़ाने के लिए

    पीस रही है प्राचीन वनस्पतियाँ

    क्या वह पूजा-कथाओं का कोई देवता है ऐसा

    जिस पर नहीं लगाना पड़ता हल्दी-चावल का तिलक

    उसे प्रसन्न करने के लिए पढ़नी पड़ती है कोई आदि कविता

    उदास लगता है वह

    एक कोने पर पड़ा हुआ सुनता है मशीन का रौरव

    जिसमें बाहर निकलने पर मसाले अपने रस से छिटक जाते हैं

    परिवार के इस बुज़ुर्ग से समय मिलने पर ही

    हो पाती है बातचीत

    और समय कितना कम है हमारे समय में

    हमारी नसों में बसे नमक और बहते हुए ख़ून में

    उसका भी अंश है

    हर दाने के साथ हमारे भीतर प्रवेश करता है

    उसके कई घर हैं कई द्वार कई खिड़कियाँ

    कई चेहरे हैं उसके

    कई सदियों से जीवित है वह

    जैसे पेड़ हर वर्ष अपने तने में बड़ा लेते हैं एक वृत्त

    वह हर बार हमारे लिए लेता है जन्म

    उसकी कई कहानियाँ हैं अनेक संस्मरण

    किसे याद करें जो भुला दिया हो

    कुछ भी नहीं है ऐसा

    कि दूर ही नहीं हुआ वह कभी हमारे जीवकोषों से

    वह पुरखा है हमारा जो कई-कई सदियों से हम में बसा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : चाँद पर नाव (पृष्ठ 99)
    • रचनाकार : हेमंत कुकरेती
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2003

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY