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लाठी

lathi

चानक शीतलता...

फूलक लालित्य...

बसातक सिहकी...

—छूबि नहि पबैछ आब

कोनो अविवाहित कन्याक

कुमारिपन कें

गदहपचीसीक देहरि टपलि

ठोस जिनगीक सत्यता स्वादैत

रोजी-रोटीक मरीचिकामे ओझराएलि

सोझ बाट,

अपन भविष्यक आकार टोहिअबैत

सोचि रहल अछि

कोनो अविवाहित कन्या—

शिक्षा-संस्कारक डेन पकड़ि

थाहैत अछि डगर-डगर

चाहैत अछि अपन ठाम

अपन नाम

जतऽ सोझकऽ अपन घाड़

ठाढ़ि भऽ सकए,

प्रमाणित कऽ सकए अपन सार्थकता

आब नहि छेदैत छै ओकरा

कोनो बोल

कोनो कुबोल

अपना कें राखि कऽ अबोल

स्वयं अपन हिसाब

अपने हिसाबे हल कऽ रहल अछि

संघर्षक उत्ताप

नस में प्रवाहित रक्तक संग

होबऽ लागल छै एकाकार

स्थिर इजोत दैत

ओकर महत्त्वाकांक्षा

दऽ रहल छै साहस

अपन प्राप्य धरि पहुँचि

ध्रुवतारा बनबाक लेल

तें

भावनाक स्फुरण

जगा नहि पबैत छै स्पंदन मे

कोनो रोमांचक अनुभव

लगैत छै जेना कोनो परीकथाक हिस्सा—

बियहुती लाल वस्त्र

औपचारिक वस्तुटा भऽ कऽ रहि गेल

शेष नहि रहल

आकर्षण

स्नेहिल आबेस

अबोधपनसँ मुक्त

दीन-दुनियाक नाड़ी चीन्हनिहारि

कोनो अविवाहित कन्या

नीक जकाँ जनैत अछि—

जेहन होएतनि पिताक सामर्थ्य

हुनक इच्छा

संगहि, जेहन बैसतनि संयोग,

कीनि अनताह जमाय

पाबि लेताह त्राण

कीनल कोनो वस्तु

अपन, नितान्त अपन होइत अछि

के करत एकर अभेला

कटाओत अप्पन नाक

कुल-खनदानक ध्वजापर

बैसाओत गिद्ध...!

तें,

कुलीन अविवाहित कन्या

मोनहि-मोन सोचैत

अपना कें स्थिर करैत

नहि तकैत अछि अपन प्रियतमक आँखि...

पढ़बाक लेल स्नेहक सीमा...

तकैत अछि

लोलुप-समाजक हिंस्र आँखिसँ

बचबाक लेल एकटा लाठी!

तें,

भरबाक अभिलाषी रहैत अछि

अपन मांग मे सिन्दूर

करऽ चाहैत अछि सफल अभिनय

जे दऽ सकै ओकरा

सुरक्षित ठोस संरक्षण

स्रोत :
  • पुस्तक : समग्र ज्योत्स्ना (पृष्ठ 21)
  • संपादक : विभूति आनन्द
  • रचनाकार : ज्योत्स्ना चन्द्रम्
  • प्रकाशन : नवारम्भ
  • संस्करण : 2017

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