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एक सवाल

ek saval

शशि शेखर

अन्य

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शशि शेखर

एक सवाल

शशि शेखर

और अधिकशशि शेखर

    मकड़ी के जाले में लिपटे वे लोग

    आराम से पसरे हैं

    क्यों?

    इस सवाल में भला रखा क्या है

    ऐसे जिए थे हमारे पिता

    पिता के पिता

    और उनके पिता

    यह हमारा ख़ानदानी ज्ञान है

    सवाल तो सिर्फ़ ख़ुराफ़ाती करते हैं

    एक तर्क—

    वे उछलेंगे-कूदेंगे-भड़केंगे

    सिर खुजलाएँगे, कहेंगे—

    भई, हमें सोने दो

    आगे बढ़ो

    परेशान बहुत करते हो!

    रोशनदानों से छनकर आती रोशनी

    क्या आशा की है?

    नहीं। कभी नहीं।

    जीवन कट जाता है

    बीत जाता है

    कुंठा में

    किसी प्रच्छन्न कुत्सा में

    अपूर्ण

    अनभिव्यक्त

    फूट पड़ने को आकुल

    स्वच्छंदता नैतिकता में सिमटी

    संकोच से तड़पती

    किसी अबूझ भूख के मारे

    बिलबिलाती

    रिरियाती

    सपनों में, अपनी अपूर्व नग्नता में

    चिढ़ाती

    घूमती

    तैरती

    नहाती

    अँधेरे में उठती बदबू से

    मन का वमन

    चिपचिपाहट

    जुगुप्सा

    किंतु फिर भी

    यात्रा अनथक

    फटी बिवाइयों से रिसते मवाद में

    लिपटी कोई मक्खी

    भिनभिनाती

    ख़ून चाटता कोई श्वान;

    लाशों पर मँडराते चील-कौवे,

    वह—

    सड़ती लाशों का द्रव हो जाना

    बहना

    छा जाना;

    ख़ुद अपने पसीने का

    स्वाद चखना

    कहाँ जाएँगे हम?

    दौड़कर

    लँगड़ाते से

    गिरते-पड़ते

    लौटकर आते

    आशा के गीत गुनगुनाकर

    फिर रातों में

    बिस्तरों की नरमी में

    पसरते

    स्खलित होते

    नहीं

    आशा कहीं

    कहीं नहीं

    जीवन यों ही कटेगा

    छिः!

    स्रोत :
    • रचनाकार : शशि शेखर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए अदिति शर्मा द्वारा चयनित

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