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एक नाकारा आदमी

ek nakara adami

पूनम शुक्ला

पूनम शुक्ला

एक नाकारा आदमी

पूनम शुक्ला

और अधिकपूनम शुक्ला

    वह करता नहीं कुछ

    जब तब सुनता रहता है सबके ताने

    पर सबकी सुनकर भी

    थोड़ा-सा सिर झुका बाहर चल देता है

    एक नाकारा आदमी

    डालता जिस काम में भी वह अपना हाथ

    काम को थोड़ा बिगाड़ता थोड़ा बनाता

    बहुत धीरे जीवन की सीढ़ियाँ चढ़ता है

    एक नाकारा आदमी

    किसी मेहमान के घर आने पर

    करना चाहता है वह उनका स्वागत

    बैठ बतियाना चाहता है उनके साथ

    पर सहमा हुआ-सा बस आगे पीछे

    डोलता है एक नाकारा आदमी

    बोलते हुए उसकी आवाज़ काँपती है

    उसकी आँखों से हया झाँकती है

    पर चाय नाश्ते के लिए बार-बार

    सबको टोकता है एक नाकारा आदमी

    वह चाय की जगह बिस्कुट देता है

    नमकीन की जगह दे आता है मिठाई

    सबको पानी पिलाकर अंत में

    वह दे आता है ठँढ़ी चाय

    वह रिश्तेदारों के साथ घूमना चाहता है

    उनके साथ उनके घर जाना चाहता है

    सभी लोग उससे कतराते हैं

    अक्सर लोग उसे साथ नहीं ले जाते हैं

    लेकिन लाख़ बहानें करके भी

    साथ चल ही देता है एक नाकारा आदमी

    उसके कपड़े बेतरतीब से होते हैं

    उसकी चाल देख सभी लोग हँसते हैं

    पर सबकी हँसी में अपनी हँसी मिलाता हुआ

    कहीं भी खाकर अपना पेट भर लेता है

    एक नाकारा आदमी

    लेकिन नितांत अकेलेपन में

    जीवन के सूनेपन में

    कहीं से मँडराता हुआ

    मिल ही जाता है वही एक नाकारा आदमी

    जब कभी हो कोई साथ

    कहीं बातों बातों में बढ़ गई हो बात

    झट साथी बन साथ चल देता है

    वही एक नाकारा आदमी

    गुमसुम और उदास शामों में

    थोड़ी पथरीली राहों में

    हँसी का पात्र बन सबको हँसने का

    मौक़ा दे ही देता है

    वही एक नाकारा आदमी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : पूनम शुक्ला
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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