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एक गायिका की याद में

ek gayika ki yaad mein

प्रभात मिलिंद

अन्य

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प्रभात मिलिंद

एक गायिका की याद में

प्रभात मिलिंद

और अधिकप्रभात मिलिंद

     

    नाज़िया हसन के लिए

    जिस उम्र में हम डरते थे
    पड़ोस के क़स्बे में भी अकेले जाते हुए
    वही उम्र रही होगी तुम्हारी शायद
    हमने सुनी थी जब 
    पहली-पहली तुम्हारी आवाज़ 
    सरहद के इस पार 

    पहले-पहल की थी 
    सायकिल की सवारी 
    पहली बार दिया था
    किसी को तोहफ़ा इत्र की एक शीशी
    जेबख़र्च से काट कर पैसे
    ख़रीदा था धूप का चश्मा 

    जिस साल गाया था तुमने अपने पहला गाना
    मैं पहली बार निकला था शहर से 
    गया था जंगल 

    पहली बार जाना मैंने 
    कि सुरों से जो रिश्ते बनते हैं
    वे सियासत से ऊपर होते हैं

    पहली बार मैंने 
    पश्चिम से आती हुई हवाओं में 
    बारूद के अलावा भी कुछ सूँघा था

    तुम्हारी एक पुरानी तस्वीर की शक्ल में 
    मैंने आज भी बचा रखी हैं
    अपनी वय:संधि की कुछ मुड़ी-तुड़ी स्मृतियाँ...

    नाज़िया हसन!
    तुम्हारी मौत से संगीत का 
    कितना नुकसान हुआ है
    यह तो पंडित जसराज ही तय करते
    मैं तो सिर्फ़ उन लम्हों की बात कर सकता हूँ
    तुम्हारे बहाने जो उँगलियाँ थामे
    ले जाते थे मुझे 
    मेरी वय:संधि के दिनों में 
    गाहे-बगाहे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रभात मिलिंद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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