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दूसरा

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शशि शेखर

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शशि शेखर

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शशि शेखर

और अधिकशशि शेखर

    हे ईश्वर!

    मेरे कुछ सवालों का जवाब तुम दो।

    हम आज इतने दूर होते

    अगर बीच में यह 'नाम' आता,

    कौन-सी कमी थी हमारी भावनाओं में

    कि जब पूछा गया इस संबंध का

    नाम तो आँखें नीची थीं?

    क्यों कोई प्यार ख़ुद अपना नाम नहीं बताता

    क्यों आयातित करना होता है उसे

    बाहर से?

    भावनाएँ बिना पूछे ही

    किसी को अपना बना लेती हैं

    चुपके-चुपके जाने कौन

    आपके लिए क्या से क्या हो सकता है

    जाने कब आप किसी को

    जीवन में

    वह दर्जा दे सकते हैं

    जो केवल उसी को दिया जा सकता था,

    फिर भी क्यों हम उसे ख़ुद ही एक नाम

    नहीं दे पाते

    खोजते हैं उस नाम को

    लोक में, व्यवहार में, परंपरा में

    यहाँ ऐसा 'द्वैत' क्यों है?

    जब खुली भावनाएँ हैं

    तो खुली भाषा क्यों नहीं?

    जो भाषा इंसान के होने की बुनियादी

    ज़रूरत है

    क्यों वह ख़ुद उसकी नहीं?

    हर ओर वही द्वैत है

    हर ओर वही प्रश्न-प्रतिप्रश्न

    क्या ठीक नहीं यदि मैं कहूँ :

    'दूसरा मेरे लिए नरक है।'

    स्रोत :
    • रचनाकार : शशि शेखर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए अदिति शर्मा द्वारा चयनित

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