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प्रथम मिलन

विजेता चौधरी

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और अधिकविजेता चौधरी

    कोहबर घरमे

    हम

    बाहरसँ गीतक टहंकार

    दुहू मन परम पिरीत...

    कौतुक चललि भवन...

    आहिस्तेसँ हमर घोघ उठौलनि

    मूनल पिपनीक पाछाँ

    डर, संकोच, उमंग भिन्ने सुखानुभूतिसँ

    हमर आँखि खुजबाक हेतु अधीर छल

    मुदा

    घोघ अनायासहिं खसि पड़लैक

    दू हाथ पाछाँ पड़ा गेलाह

    जेना कोनो विरूप वस्तु देखा गेल हो तहिना

    टह-टह लाल पटोरक भीतरक चन्द्रमा

    अनायासे सियाह भऽ उठलैक

    जेना ग्रहण लागल रातुक इजोरिया

    धड़फड़ीमे उठिकऽ ठाढ़ भेलाह

    अपन नव वधुकेँ

    सम्भवतः कोहबरमे छोड़ि पलायन होयबाक मनसँ

    कहलनि नहि

    बहुत दिनसँ ओढ़ल लाचारीक घोघ उठौलहुँ

    घोघक भीतरक यथार्थ

    यथार्थक भीतरक घोघ आर के उठा सकैत छल

    एहि एक क्षणमे पर्दाक सीमा-रेखा समाप्त भऽ गेल छलैक

    कहलियनि—

    अहाँक मनोनुकूल हम पद्मिनी तँ नहि छी

    सम्भवतः चित्रिणी वा शंखिनी सेहो नहि

    मुदा हृदयनी अवश्य छी

    हम वर्णसँ अन्हरिये सही

    अहाँक जीवनमे इजोरियाक स्रोत बनि आयब

    निरन्तर दीपक बनि जगमगायत प्रेमक दीप

    हमर विनय किंवा आग्रह नहि

    संगिनीक रूपमे एक गोट स्वस्ति अछि

    कोनो पण्डितक उवाच सेहो नहि

    कोनो लाचारीक अनुग्रह सेहो नहि

    किंमार्थ नहि

    प्रेमसँ सुन्दर

    जँ सौन्दर्य केर कोनो दोसर परिभाषा छैक

    तँ अहाँ स्वतन्त्र छी

    मृगनयनी हम ने सही

    हँ, अहाँक आँखिमे सुखक निन्न

    शान्तिक ओछाओन

    समृद्धिक स्वप्न लऽ कऽ आयब निरन्तर

    अहाँक सुखमे सहधर्मिनी

    दुःखमे दुःखहरिणी बनि आयब

    जेना फाटल खेत बरखा

    जेना टूटल घर मजबूत भीत

    अहाँक कल्पनाक रूपसी हम नहि किंचित

    मुदा आधारशिला बनि आयब

    जाहिपर ठाढ़ हेतैक

    आस्था विश्वासक असंख्य महल सभ

    जे युगो-युग धरि

    प्रेमक प्रतीक ब... न...तै...क...

    अनायास बाँहि हारक कसाव सन आभास भेल

    हम ओहि गरमाहटिमे विलुप्त होइत चलि गेलहुँ

    बाहर गीतक टहंकार एखनहुँ जारी छल

    ...दुहू मन परम पिरीत...।

    स्रोत :
    • पुस्तक : धाराक विरुद्ध (पृष्ठ 62)
    • रचनाकार : विजेता चौधरी
    • प्रकाशन : नवारम्भ
    • संस्करण : 2019

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