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देस ओ कै

des o kai

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

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और अधिकआद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

    कौनौ हिंदू कौनौ मुसुरमान कै,

    कौनौ सिख पारसी ना तौ क्रिस्तान कै,

    देस कै कि जे जान पै खेलि के

    बढ़ि के रच्छा करै देस की सान कै।

    कै करतूत जग मा बखानी अहै,

    कै कन-कन गूँजत कहानी अहै,

    देस की राह मा सिर दिहिस झूमि के

    ओसी बाढ़ के कहा कौन दानी अहै।

    हँसि के जननी-जनम भूमि पै मरि गवा,

    पीर धरती जिउ होमि के हरि गवा,

    चाँद सूरज तलक कै चरचा चली

    सात पुरखन ओसी जनम तरि गवा।

    मान सम्मान धन और धरम व्यर्थ बा,

    पाठ पूजा और सारा करम व्यर्थ बा,

    काम आवा धरती के संकट जे

    कै दुनिया सब पयसरम व्यर्थ बा।

    पूजा पावा थै बीर बाँका कि जे,

    जूझै धरती कै संकट निवारन बरे,

    ऐसे मुरदन कै गिनती कहाँ जे मरे

    गीध कउआ कुकुर सियारन बरे।

    देस काटै कि खातिर उठे हाथ तौ,

    बेझिझक, बेहिचक हाथ कइ द्या कलम,

    सत्रु की राय मा जे हुँकारी भरै

    के ललकार के माथ कइ द्या कलम।

    खाय कोहराने, भूकै लोहराने मा,

    ऐसे पापी मारे बड़ी पुन्नि बा,

    नाहीं गरदन झुकै देस के पाँव मा

    ऐसी गरदन उतारे बड़ी पुन्नि बा।

    कौनौ भाषा का झंडा उठाए चला,

    कौनौ मजहब के नारा दिहे जात बा,

    कौनौ नाचा थै पुतरी बना काठ कै

    जौन दुसमन इसारा किहे जात बा।

    कौनौ पच्छिउ जाथै कौनौ पुरब,

    कौनौ उत्तर दक्खिन कौनौ चला,

    सब सबै के रकत कै पियासा बना,

    चारिउ कइती रचाये अहैं करबला।

    कौनौ हड़ताल रैली असहयोग कै,

    दुंदुभी घर बइठा बजावत अहै,

    कौनौ सबदन के गजरा से मूँदे नयन

    अपने नेता मूरत सजावत अहै।

    गाल बाटै बजावत केहू झूमि के,

    केउ दुलत्ती हुमुकि के चलावत अहै,

    जे जहैं बा झिझक सरम छोड़िके

    उहीं दाल आपन गलावत अहै।

    आपै डफली बजावत अहै केउ कहू,

    कसि के आपन केहू संख फूँकत अहै,

    कौनौ फेकरत अहै गिरि के औंधा परा

    कौनौ आँधर बतासे भूँकत अहै।

    अस मची लूट चारिउ कइत देस मा,

    के कहै चोर रखवार लूटत अहैं,

    दिन दुपहर कौनौ रोंकइया बा

    रात मा सब दिया बार लूटत अहैं।

    केसी फरियाद आखिर करै जाइके,

    केउ के ऊपर कौनौ एतबार बा,

    एकै खोपड़ी सारे नहावा अहैं

    एहमा लागा थै सबकइ मिली मार बा।

    वहिं हिमालय से लड़के समुंदर तलुक,

    एक अहदंक छावा अहै देस मा,

    सबके गोड़े से मूड़े तलक कँपकँपी

    जइसे भूकंप आवा अहै देस मा।

    केउ केउ कै सुनै, केउ केउ कै गुनै,

    चारिउ कइती छिड़ा बेसुरा राग बा,

    यहि भरी भीड़ मा जौनी कइती लखा

    सबके दामन छोटा बड़ा दाग बा।

    चारिउ कइती से कउआ गिदिर बा मची

    लागै साजिस सोझै फंसा देस बा,

    जाल काटै हिकमत निकारे परी

    यारौ फंदा कसि के कसा देस बा।

    छुछेरन फरफंद काटै बरे,

    यारौ मिलिके कमर कसि के आवा तनी,

    बिनु मरे अपने कैसे के देखब्या सरग

    हाथ आवा जवानौ बढ़ावा तनी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : माटी औ महतारी (पृष्ठ 45)
    • रचनाकार : आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'
    • प्रकाशन : अवधी अकादमी

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