डायरी
Dayri
अब मेरी डायरी
केवल मेरे एकांत की गवाही नहीं
वह एक साझी प्रार्थना है,
जिसके हर पन्ने पर
किसी अनकहे नाम की छाया
धीरे से उतरती है,
जैसे धूप खिड़की से फिसलकर
किसी अधूरी कविता पर ठहर जाए।
पहले वहाँ केवल मैं थी
तारीख़ों की ठंडी स्याही,
कुछ रूखे प्रश्न,
कुछ अपूर्ण स्वप्न
जो सिरहाने करवट बदलते थे।
अब...
वहाँ कुछ साझा हैं
जो एक-दूसरे की भाषा जानते हैं,
कुछ मौन हैं जो साथ के स्पर्श से बोलने लगे हैं,
और कुछ पंक्तियाँ
जिन्हें मैंने नहीं, शायद हमने लिखा है।
क़लम अब
सिर्फ़ मेरी उँगलियों के भार से नहीं चलती
जहाँ पहले सिर्फ़
तारीख़ें होती थीं
अब कुछ नाम हैं,
कुछ जगहें,
कुछ ऐसे संज्ञाहीन क्षण
जो सिर्फ़ हम जानते हैं।
वहाँ कुछ स्पर्श हैं
जो पन्नों पर नहीं, पंक्तियों के बीच बसते हैं,
कुछ उत्तर हैं
जो कभी पूछे नहीं गए
और फिर भी किसी आहट ने
अपनी उपस्थिति से दे दिए।
अब जब हम टूटते हैं
या बस हाथ थमते हैं
डायरी में दर्ज पंक्तियाँ
किसी अपरिचित करुणा से ठहर जाती हैं,
जैसे वह कह रही हो
हर बार जब तुम पीड़ा उकेरती हो,
तब एक अनदेखा स्पर्श
उस पन्ने को सहला जाता है
जैसे वह कह रहा हो,
हाँ, मैं भी यहीं हूँ।
अब मेरी डायरी
केवल मेरी नहीं रही
उसमें एक और हिस्सा साँस लेता है
सजग, मौन, छिपा हुआ,
लेकिन इतना निकट
जैसे आत्मा का कोई अनकहा पक्ष।
- रचनाकार : शैरिल शर्मा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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